कंबन तमिलनाडू के प्रतिभावान तथा सूक्ष्मदर्शी विद्वान थे। ओटूक्कूत्तन नाम का उनका एक मित्र था, वह भी बडा विद्वान था। कंबन तमिल में रामायण की रचना कर रहे हैं, यह जानने पर कूत्तन को भी प्रेरणा हुई तथा उन्होंने भी तमिल में रामायण की रचना करना आरंभ किया। दोनों की रामायण की रचना स्वतंत्र रूप से आरंभ रही, तथा यथासमय पूरी भी हो गई।
कंबन द्वारा रचित रामायण बहुत लोकप्रिय हुई। कंबन अपनी रामायण गाना आरंभ करते तो श्रोता मग्न हो जाते तथा उनकी प्रशंसा करते। कंबन का आदर किया जाता तथा सर्वत्र जयकार हो रही थी।
लेकिन कूत्तन अपनी रामायण गाने बैठते तो बहुत ही कम श्रोता होते थे। अत: कूत्तन का मन बड़ा खराब हुआ कि सारा श्रम व्यर्थ गया। मैं ऐसी ही उपेक्षित अवस्था में जीकर मर जाऊंगा! ऐसा सोचते सोचते उनके जीवन में सर्वत्र निराशा का अंधेरा फैल गया। अंत में एक दिन कूत्तन ने स्वयं रचित रामायण जलाकर उस रामायण की राख शरीर पर मल लेना निश्चित किया। जब वे अपनी रामायण जला रहे थे तो यह बुरा समाचार कम्बन के कानों तक पहुंचा। वे दौडते हुए अपने मित्र के पास पहुंचे और देखा कि कूत्तन स्वयं रचित रामायण की पोथी जला रहे थे।
कंबनने उनसे कहा- अरे पगले! यह क्या कर रहे हो ? स्वयं रचित रामायण ऐसे क्यों जला रहे हो? उसपर कूत्तन ने कहा- तुम्हारे सामने मैं जुगनू हूं; मेरी रामायण को कोई भी नहीं पूछेग । उसपर धूल जम जाएगी। इससे तो अच्छा है कि उसे जला दूं।
कंबन ने कूत्तन का हाथ पकड लिया। कूत्तन की रामायण का उत्तरकांड ही जलना बाकी था, कंबन ने वह अपने पास रख लिया।
कंबनने कूत्तन से कहा- अरे पगले! तू तो मेरा मित्र है न! यह जलाने से पूर्व मुझे बता तो देते! अब जो मैं बोलता हूं, वह सुनो। तुम्हारी रामायण लिखकर पूरी हो गई है, मेरी रामायण के उत्तरकांड की रचना अभी बाकी है। उसकी रचना मैं अब नहीं करूंगा। मेरी रामायण में तुम्हारा यह उत्तरकांड जोड दूंगा, इससे रामायण पूर्ण हो जाएगी।
लोग तुम्हें तथा मुझे रामायण रचियता के नाम से जानेंगे!