पंडित जी ने गोदाम पर दीपावली पूजा का सुबह 6:00 बजे का मुहूर्त बताया है! तुम सारी तैयारी अभी से कर लो, द्वारका जी के दुकान से घर आते ही उनकी पत्नी उनसे बोली।
अरे वाह ! आज तो आप बड़ी जल्दी घर आ गए?
हां भागवान! सारा काम काज मुनीम जी के भरोसे छोड़ कर आया हूं; आखिर कल महालक्ष्मी जी की पूजा की तैयारियां भी तो करनी है।
पूजा की बाकी सामग्री तो घर पर ही उपलब्ध है, आप अभी घूमने जाओ तो मालाएं ले आना जी।
द्वारका जी ने तुरंत वस्त्र बदले और पड़ोसी शर्मा जी के साथ शाम की सैर पर निकल गए।
द्वारका जी आज पैर बाजार की तरफ कैसे मोड़ लिए? भिन्न रास्ते की ओर बढ़ते देख शर्मा जी ने पूछा।
बस जरा यूं ही मालाएं खरीदनी हैं; बाजार में फूल मालाओं की स्थाई दुकानों के साथ-साथ जमीन पर टोकरी लिए अस्थाई विक्रेता भी बैठे थे।दो-तीन जगह मोल भाव करने के बाद द्वारका जी की निगाहें -एक कोने में बैठी छोटी सी टोकरी लिए- 14 से 15 साल की लड़की पर पड़ी। जमी जमाई दुकान वाले- ₹1भी कम नहीं कर रहे- यही सोचकर वह उस लड़की के पास पहुंचे।
उसकी टोकरी में गिनती की मालाएं और फूल थे! शायद आसपास की दुकानों से ही सस्ते भाव में खरीद कर लाई थी! यह हजारे की माला कितने की है?
बाबूजी ₹ 20 की है!
और गुलाब की माला?
₹ 50 की है जी!
इतना महंगा लगा रही हो- देखती नहीं ऐसी मालाएं 10- 10 रु में मिल रही हैं! सही लगा सारी खरीद लूंगा उन्होंने आंखों ही आंखों में बची हुई मालाओं को गिनते हुए कहा।
द्वारका जी को अपनी ओर आते देख लड़की की आंखों में जो चमक आई थी- अब बुझ गई!
बाबूजी 15 रु की तो मेरी खरीद ही है! गुलाब की माला 40 कि मैं लाई हूॅं -कुछ तो मेरे लिए भी बचना चाहिए ना!
उसके शब्दों में बेबसी थी!
रहने दे,रहने दे- झूठ मत बोल! कहते हुए द्वारका जी ने 15 हजारे की मालाएं और तीन गुलाब की मालाएं अलग कीं; अब टोकरी में मात्र दो हजारे की और एक गुलाब की माला ही शेष बची थीं।
बाबू जी यह तीनों मालाएं भी ले लीजिए।
देखती नहीं, उनके फूल मुरझा गए हैं- उन्हें लेकर क्या करूंगा? 15 रु प्रति हजारे की माला- और 40 रु प्रति गुलाब की माला के हिसाब से कुल रुपए पकड़ाए।
वह कुछ देर इधर-उधर देखती रही- फिर आते अंधेरे का आभास कर- और किसी अन्य ग्राहक को ना आते देख- भरे मन से माला एक कागज में पैक करने लगी।
हम थोड़ी देर में घूम कर आते हैं- फिर यह मालाएं तुझ से ले लेंगे- कहते हुए द्वारका जी शर्मा जी का हाथ पकड़ आगे बढ़ लिए! इतनी मालाओं का क्या करोगे?
द्वारका जी – शर्मा जी कल तीन जगह पूजा होनी है; और इससे सस्ती मालायें,कहीं नहीं मिलने वाली।
लौटते वक्त बातों-बातों में दोनों मित्र ऐसे लगे- कि मालाएं लेना ही भूल गए। खाना खाने के बाद पत्नी ने द्वारका जी को उलाहना दिया – मैंने तो पूजा की सारी तैयारी कर ली- किंतु कहने के बावजूद आप माला लेकर नहीं आए!
क्या मालाएं? अरे बाप रे!और उन्होंने पत्नी को सारा किस्सा बताया- फिर गाड़ी लेकर तुरंत रवाना होने लगे! तो पत्नी बोली – रहने दो,अब तुम्हें वहां कौन मिलेगा? कल सुबह जल्दी मंदिर से मालाएं खरीद लेंगे, पत्नी ने इन्हें रोका। उम्मीद तो मुझे भी बिल्कुल नहीं किंतु एक बार प्रयास तो कर के देख लेता हूं। कहते हुए द्वारका जी रवाना हुए, क्योंकि माला के पैसे जो दिए हुए थे।
रात के 9 बज चुके थे बाजार में कुछ दुकानें अभी भी खुली थी- किंतु फूल माला लेकर बैठने वाले जा चुके थे! द्वारका जी ने गाड़ी रोकी और उस अंधेरे कोने की ओर बढ़े, जहां से उन्होंने मालाएं खरीदी थीं। वह लड़की अभी भी टोकरी लेकर वहीं बैठी थी।
बाबूजी आप इतनी देर से आए हैं,आपको पता भी है मेरा घर कितनी दूर है? मेरी मां घर पर भूखी होगी। पता है यहां पर पुलिसवालों और बदमाशों ने मुझे कितना परेशान किया? द्वारका जी को देखते ही वह फूट पड़ी।
मुझ पर चिल्ला रही हो इतना ही था- तो चली जाती।
ऐसे कैसे चली जाती? आखिर आपकी अमानत मेरे पास थी।
द्वारका जी स्तब्ध रह गए कुछ क्षण बाद शब्द बटोर कर बोले- तो क्या हुआ अगर मालाएं रह जाती तो हमें क्या फर्क पड़ता।
आपको फर्क नहीं पड़ता बाबूजी! हमारे फर्क पड़ता है। अगर मैं आपको यहां पर नहीं मिलती तो क्या आप कभी सड़क पर बैठकर धंधा करने वाले हम जैसे छोटे लोगों का विश्वास करते? आप हमें चोर समझते और फिर कभी हमसे सामान नहीं खरीदते।
मां ने सिखाया है: ग्राहक का विश्वास ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है
और अगर मैं रात भर नहीं आता तो?
तो मैं घंटे भर और इंतजार करती- फिर आपके नाम से मंदिर में मालायें चढ़ा देती।
चतुर द्वारका जी के शब्द अब कहीं खो गए थे- वह कुछ देर उसकी ओर अपलक देखते रहे; फिर उन्होंने एक माला निकाल कर उसके गले में डाली, हाथ में ₹500 का नोट पकड़ाया। शेष बची मालायें गाड़ी की पिछली डिग्गी में रखी,और उसका हाथ पकड़ पास ही रेस्तरां में ले गए और खाना पैक करवाने का आदेश दिया।
उसने विरोध किया किंतु द्वारका जी के आगे उसकी एक न चली। चल मैं तुझे घर छोड़ कर आता हूं- खाना पैक होते होते उन्होंने कहा, द्वारका जी बोले – बेटा! साक्षात लक्ष्मी को भोग लगा रहा हूं,मना मत करना, मेरी लक्ष्मी पूजा तो आज ही हो गई।