एक दिन सन्त कबीर बाजार से निकल रहे थे तो मार्ग में एक औरत को चक्की पर अनाज पीसते हुए देखा। चक्की को देखकर कबीर जी को रोना आ गया। लोगों ने उनसे अचानक रोने का कारण पूछा, किन्तु कबीरजी ने कोई उत्तर नहीं दिया। इतने में वहां निपट निरंजन नाम के एक साधु आए। उन्होंने भी कबीरजी से रोने का कारण पूछा।
उस साधु का वास्तविक रूप पहचान कर कबीरदास बोले – इस चक्की को घूमता देखकर मन में चिन्ता हुई कि उस चक्की में डाला हुआ अनाज पिसकर आटा बन रहा है। उसी प्रकार, इस संसार के चक्कर में पडे हम लोग भी पिस जाएंगे; इस विचार से मेरा मन दुखी हो गया है।
तब साधु बोले – कबीर! थोडा सोचो। यह सच है कि चक्की में पडा अनाज पिसकर आटा बनता है, किन्तु यह भी सत्य है कि चक्की की खूंटी के पास पडे अनाज के दाने नहीं पिसते, वे सुरक्षित रहते हैं।
इसका अर्थ है कि यह संसार एक चक्की के समान है और भगवान उस खूंटी के समान। जो भगवान का नाम जप करते हुए उनके चरणों में रहते हैं, उनको वह कभी पिसने नहीं देते। उसी प्रकार, जो लोग भगवान के नाम से साधना से दूर रहते हैं, अर्थात भगवान के नाम का जप नहीं करते, वो ही कालचक्र के थपेडों में फंस जाते हैं।
और दुनिया रुपी इस चक्की में अनाज की तरह पिस जाते हैं ।