लोकसभा चुनाव नतीजों से उत्साहित कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल गांधी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने लगा है. लेकिन क्या राहुल गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस हिंदुओं का भरोसा दोबारा जीत पाएगी. आज भले ही राहुल गांधी को एक ब्रांड के तौर पर पेश किया जाने लगा हो. लेकिन देश का बहुसंख्यक हिंदू मतदाता अभी भी उन पर भरोसा करने की स्थिति में नहीं दिखता. ऐसा कहना गलत होगा कि तमाम हिंदुओं ने कांग्रेस को वोट दिया है.
क्योंकि कांग्रेस की जो स्थिति में सुधार आया है. वो कांग्रेस के खटाखट पैसों वाले लालच और आरक्षण खत्म हो जाने का डर दिखाने की वजह से आया है. इसमें कांग्रेस और राहुल गांधी का कोई खास प्रयास शामिल नहीं रहा है. इंडी गठबंधन का फायदा भी कांग्रेस को हुआ है. ऐसे में कांग्रेस को लग सकता है कि उन्होंने जो अल्पसंख्यकों को लुभाने वाला घोषणा पत्र बनाया था. उसे हिंदू भूल पाएगा. राहुल गांधी एक ऐसे हिंदू के रूप में नजर आते हैं. जो खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण भी बताते हैं और सावन में बकरे का गोश्त भी खाते नजर आते हैं.
मौके बे मौके अपनी नींद से जागने वाले राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को जब भी मौका मिलता है वो सनातन धर्म के खिलाफ जगह उगलने से पीछे नहीं हटते. पिछले दिनों उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की द्वारका पूजा को ड्रामा बताया था. हैरानी की बात है कि राहुल गांधी को पूजा पाठ में ड्रामा नजर आता है. जबकि उनसे पूछा जाना चाहिए कि मां सोनिया के साथ संतरे का मुरब्बा बनाना, लालू यादव से मटन बनाना सीखना, खेतों में किसानों के साथ काम करना क्या ये ड्रामा नहीं है.
प्रधानमंत्री मोदी ने सही कहा है कि वोट बैंक की राजनीति के लिए उनकी द्वारका पूजा का मजाक उड़ाया गया है. ये वही राहुल गांधी हैं जो टेंपल रन के लिए कुख्यात हैं और खुद को जनेऊधारी हिंदू कहलवाए जाने का उतावलापन दिखा कर हंसी के पात्र बन चुके हैं. जय श्री राम के नारे पर आपत्ति जताने वाले राहुल गांधी को क्या जय श्री राम का मतलब भी पता है. क्या उन्हें द्वारका में पूजा करने के मायने पता हैं. मूर्तियों के सामने फोटो खिंचवाने वालों को मंदिर के महात्म से मतलब नहीं होता. राहुल गांधी उसी पार्टी की नुमाइंदगी करते हैं, जिसने राम के अस्तित्व को ही नकार दिया था. जाहिर है राम के अस्तित्व को नकारने का मतलब सनातन के अस्तित्व को नाकारना है.
कांग्रेस हमेशा सनातन के विरोधी के रूप में खड़ी नजर आती है. क्या राहुल गांधी इस बात का जवाब दे पाएंगे कि सनातन धर्म के खिलाफ जहर उगलने वाली डीएमके का साथ देने की उनकी ऐसी क्या मजबूरी है. क्या हिंदुओं को ये सब नजर नहीं आता. कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस नेता की जीत पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते हैं औऱ राहुल गांधी खामोश रहते हैं. ये हिंदू मतदाता को नजर आता है.
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस के लोग राहुल गांधी को मैन ऑफ द मैच भले ही करार दे रहे हों.लेकिन राहुल गांधी शायद ये कभी ना भूल पाएंगे कि इससे पहले तक हर बार के चुनावों में वो खुद ही अपनी ही पार्टी के लिए हार की वजह बनते थे, लेकिन इस बार चुनाव नतीजे आने के बाद जब ना तो कांग्रेस की सरकार बनी और ना ही इंडी गठबंधन की, तब ऐसे में सवाल तो बनता है कि राहुल गांधी अब अगले पांच साल करेंगे क्या.
चुनाव नतीजों के आने के बाद, कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी को लोकसभा में पार्टी का नेता नियुक्ति करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. लेकिन राहुल गांधी ने फिलहाल सोचने के लिए वक्त मांगा. पार्टी अध्यक्ष का पद वो पहले से ही ठुकरा चुके हैं. वो क्या फैसला लेंगे कोई कुछ नहीं कह सकता. राहुल गांधी के बारे में कहा भी जाता है कि वो सियासी ताकत तो चाहते हैं, लेकिन जिम्मेदारी नहीं. ऐसे में अगले पांच साल वो क्या करेंगे. ये कहना या अनुमान लगाना मुश्किल है.हो सकता है चुनाव नतीजों के बाद वो लंबी छुट्टी मनाने विदेश चले जाएं.
99 सीट पर कांग्रेस की इस जीत का क्रेडिट राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा को दिया जा रहा है. लेकिन जानकार मानते हैं कि इससे ब्रांड राहुल गांधी ज्यादा मजबूत हुआ है. उनके समर्थकों, मतदाताओं और कैडर में विश्वास जागा है कि राहुल गांधी पार्टी को जीत की ओर ले जा सकते हैं. लेकिन अभी आने वाले दिनों में दिल्ली समेत कई राज्यों में चुनाव होने हैं. इन चुनाव में राहुल की असली परीक्षा होनी है.क्योंकि आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के ठीक बाद गठबंधन से दूरी बना ली है.ममता पहले से ही अलग हैं. ऐसे में इंडी गठबंधन का फायदा उठा कर मैन ऑफ द मैच बने राहुल के लिए असली मुश्किल तो अब सामने आएगी. विपक्ष को एकजुट रखना राहुल गांधी के मुश्किल भरा साबित होगा.हो सकता है राहुल गांधी का वक्त विपक्ष को एकजुट करने में ही बीते.
सवाल तो बनता है कि कांग्रेस में नई जान फूंकने वाले राहुल गांधी. क्या उसे सत्ता की दहलीज तक पहुंचा पाएंगे. मोदी सरकार को जुमलों की सरकार बताने वाले राहुल गांधी इस चुनाव में खटाखट जैसे जुमलों का सहारा लेते दिखे. मोदी सरकार पर, लोकतंत्र खतरे में है और लोकतांत्रिक संस्थाओं के दुरुपयोग जैसे आरोप लगाने वाले राहुल गांधी के लिए कहा जाता है कि वो डिज्नी के राजकुमार की तरह हैं जो अपनी ही दुनिया में रहते हैं. ऐसे में अब वो हिट एंड रन स्टाइल में आरोप नहीं लगा पाएंगे. उन्हें खुद को साबित करना होगा.
इस बार के चुनाव का नतीजा हर किसी को खुश होने के लिए कुछ न कुछ दे कर गया है. लिहाजा राहुल गांधी भी खुश हैं. लेकिन राहुल गांधी के अगले पांच साल का काम, उनका भविष्य या फिर अगले चुनाव में उनका प्रदर्शन एनडीए सरकार की नाकामी पर निर्भर करेगा. यानी एनडीए ने पिछले दो कार्यकाल जैसे कठोर और बड़े फैसले लिए तो राहुल गांधी के लिए मोदी विरोध करने के अलावा कोई काम नहीं बचेगा.
राहुल गांधी को लग सकता है कि हर बात में मोदी विरोध की वजह से उनका प्रदर्शन सुधरा है तो ये उनके लिए भूल साबित होगी.कभी कांग्रेस की पनौती तो कभी पप्पू के नाम से आलोचकों के निशाने पर रहने वाले राहुल गांधी की राह अभी इतनी भी आसान नहीं होने वाली है. राहुल गांधी को अगले पांच साल में खुद को साबित करना होगा. सिर्फ मोदी विरोध के बूते उनकी सियासत ज्यादा दिन नहीं चल पाएगी. जिस तरह महिलाएं राहुल गांधी की गारंटी पर अब उनसे खटाखट वाले एक लाख रुपए लेने के लिए कांग्रेस ऑफिस पहुंच रही हैं. अगले चुनाव में उनकी गारंटी पर शायद ही कोई भरोसा करे. राहुल गांधी को कथनी और करनी के फर्क को भी मिटाना होगा. (तस्वीर साभार – राहुल गांधी के फेसबुक पेज से साभार)