एक बार फिर नालंदा विश्वविद्यालय का वैभव जगमगाने को है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन किया है. करीब आठ सौ साल पहले खिलजी वंश के शासक बख्तियार खिलजी ने इसके इसी वैभव को खंडहर में बदल दिया था. आज इसी खंडहर से कुछ ही दूरी पर 1749 करोड़ रुपए की लागत से विश्वविद्यालय का नया परिसर बना है.
कैसा था नालंदा विश्वविद्यालय का वैभव?
दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय 450 ईस्वी में गुप्त सम्राट कुमार गुप्त द्वारा स्थापित हुआ था. जहां दुनिया भर से छात्र पढ़ने के लिए आते थे. इसने दुनिया को सात सौ साल तक यहां से ज्ञान दिया. यह एक भव्य विश्वविद्यालय था जहां 300 कमरे, 7 बड़ी कक्षाएं और अध्ययन के लिए नौ मंजिला विशाल लाइब्रेरी (पुस्तकालय) था. इस लाइब्रेरी में 90 लाख से ज्यादा किताबें और पांडुलिपियां थीं. यहां 1500 से ज्यादा शिक्षक (आचार्य) एक साथ दस हजार से ज्यादा छात्रों को पढ़ाते थे. यहां साढ़े पांच सौ छात्रों की क्षमता वाला एक हॉस्टल (छात्रावास) भी था.
यहां एडमिशन के छात्रों को कठिन टेस्ट पास करने पर मिलता था. एक बार दाखिला मिलने पर छात्र को शिक्षा, रहने और खाने का इंतजाम बिना किसी शुल्क (फीस) के मिलता था. यहां चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया, इंडोनेशिया. ईरान, मंगोलिया और ग्रीस के छात्र अध्ययन के लिए आते थे. यहां धार्मिक, फिलॉसिफी, मेडिसिन, लिट्रेचर समेत कई विषयों की पढ़ाई होती थी. सातवीं सदी में चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय में ही शिक्षा ग्रहण की थी. उसने अपनी किताबों में इसकी भव्यता का जिक्र किया है. नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा के बड़े केंद्र के साथ-साथ बौद्ध धर्म का अहम केंद्र था. भारतीय गणित के जनक आर्य भट्ट (छठवीं शताब्दी में) नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख थे. ऐसा दावा किया जाता है कि गणित और खगोल विज्ञान के कई सिद्धांत (थ्योरी) यहीं से दुनिया भर में फैली.
तीन महीने तक जलती रहीं किताबें
करीब सात सौ साल तक ज्ञान की अलख जगाने वाले नालंदा विश्वविद्यालय को खिलजी की खुन्नस की आग ने जलाकर राख कर दिया. 1193 में बख्तियार खिलजी ने इस पर हमला करवा दिया. कुछ इतिहासकार ऐसा दावा करते हैं कि बौद्ध धर्म का केंद्र होने की वजह से बख्तियार खिलजी इसे इस्लाम के लिए चुनौती मानता था. उसने यहां इस्लाम की शिक्षा का दबाव डाला. इसके अलावा एक थ्योरी जो दूसरे इतिहासकार बताते हैं. वो ये है कि बख्तियार खिलजी काफी बीमार था. लेकिन यहां के बताए इलाज से वो खुश नहीं था. इसलिए उसने नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला कर दिया. उसने यहां नरंसहार किया और किताबों में आग लगवा दी. जो तीन महीने तक जलती रहीं. इस नरसंहार में हजारों विद्वान और बौद्ध भिक्षुओं को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया.
नालंदा विश्वविद्यालय में नरसंहार पर वामपंथी झूठ
नालंदा विश्वविद्यालय में हुए इस नरसंहार को वामपंथी इतिहासकारों ने बौद्ध धर्म बनाम हिंदू धर्म का रूप देकर समाज में नफरत के बीज बोने की कोशिश की. तिब्बती साहित्य के आधार पर दावा किया जाता है कि कलचुरि वंश के राजा कर्ण ने कई बौद्ध विहार को नष्ट किया. इस तरह वो इस्लामी आक्रांताओं को क्लीन चिट देते हैं और हिंदू राजाओं पर नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने का आरोप लगाते हैं.
पुरातत्व विभाग की खुलाई में नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष 14 हेक्टेयर में मिले. हालांकि इसे सिर्फ दस फीसदी हिस्सा ही माना जा रहा है. साल 2006 में एक बार फिर नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की शुरुआत हुई. बिहार सरकार की ओर से यूनिवर्सिटी के लिए 242 एकड़ जमीन दिए जाने के बाद अब विश्वविद्यालय एक बार फिर अपने पुराने वैभव को पाने के लिए बेकरार नजर आती है. ( तस्वीर साभार – नरेंद्र मोदी फेसबुक पेज से साभार)