दारुल उलूम देवबंद ने अपने एक फतवे में ‘गजवा-ए-हिंद’ (Ghazw-e-Hind) को मान्यता दी है. देश की सबसे बड़ी इस्लामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद ने ‘गजवा-ए-हिंद’ को इस्लामिक नजरिए से सही माना है. ‘गजवा-ए-हिंद’ को मान्यता देने वाला यह फतवा दारुल उलूम देवबंद की बेवसाइट में पोस्ट किया गया था. जिसके बाद, इस फतवे पर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) ने कार्रवाई का निर्देश दिया है और इस फतवे को देश विरोधी बताया है.
क्या है ‘गजवा-ए-हिंद’?
भारतीय भू-भाग में इस्लाम फैलाने के लिए की जाने वाली जंग को ‘गजवा-ए-हिंद’ कहा जाता है. यह एक प्रकार का मिशन है जो मुस्लिम देशों द्वारा हिंदू बहुल भारत के लिए चलाया जा रहा है. मिशन के कर्ताधर्ताओं के शब्दों में कहें तो भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले काफिरों को हराकर उन्हें मुस्लिम बनाने का मकसद ही ‘गजवा-ए-हिंद’ है. इस युद्ध में शामिल होने वाले सिपाहियों को गाजी कहा जाता है.
फतवे पर होगी कार्रवाई
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) का कहना है कि ‘गजवा-ए-हिंद’ बच्चों के विकास के लिए सही नहीं हैं. इसलिए इस पर कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं. इस पर जल्द प्रभावी कार्रवाई होगी. इस मसले पर दारुल उलूम देवबंद का कहना है कि यह साल 2008 की जानकारी है. इस अब क्यों कार्रवाई की जा रही है.
अक्सर चर्चा में बना रहता है ‘गजवा-ए-हिंद’
कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के लिए ‘गजवा-ए-हिंद’ एक फसंदीदा फिलॉसफी रही है. आतंकी संगठन अलकायद भी कई बार भारत के खिलाफ जहर उगलते वक्त ‘गजवा-ए-हिंद’ का जिक्र कर चुका है. पाकिस्तान में इस विचारधारा के काफी समर्थक हैं जो इसे भारत-पाकिस्तान युद्ध से जोड़ते हैं. जबकि कई इस्लामिक जानकारों को कहना है कि हदीस से जोड़कर इसकी गलत व्याख्या की जाती है. हालांकि इस बात पर मतभेद है कि ‘गजवा-ए-हिंद’ का विचार हसीद का हिस्सा है या नहीं.