यूपी के बागपत में लाक्षागृह-कब्रिस्तान विवाद पर करीब 53 साल बाद आए कोर्ट के फैसले में हिंदू पक्ष को बड़ी कानूनी जीत हासिल हुई है. कोर्ट मे केस की सुनवाई के दौरान माना कि ये स्थान कब्रिस्तान नहीं बल्कि महाभारत कालीन लाक्षागृह है. जहां दुर्योधन ने पांडवों को यहां जलाकर मारने की साजिश रची थी, लेकिन विधुर की चालाकी की वजह से पांडव यहां से सुरक्षित बच निकले थे.
कब शुरू हुआ विवाद?
करीब 100 बीघा जमीन और मजार पर हिंदू पक्ष को मालिकाना हक मिला है. विवाद की शुरुआत 1970 में हुई थी. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि बरनावा में पुराने टीले पर शेख बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान है. जो सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में दर्ज है. जबकि हिंदू पक्ष इस टीले को महाभारत काल के लाक्षागृह से जुड़े होने का दावा करता आया है. पहली बार 1970 में मुस्लिम पक्ष की ओर से केस दायर किया गया. यहां 1952 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में हुई खुदाई में कोई अवशेष मिले. जिनमें महाभारत काल यानी 4500 साल पुराने बर्तन भी शामिल थे.
क्या है बरनावा का इतिहास?
बागपत के बरनावा में लाक्षागृह गुफा है. बरनावा की पहचान महाभारत में वर्णित वारणावत से की जाती है. यह हिंडन और कृष्णा नदी के संगम पर स्थित है. गांव के दक्षिण में लगभग 100 फीट ऊंचा और 30 एकड़ भूमि पर फैला हुआ एक टीला है. जिसे लाक्षागृह का अवशेष समझा जाता है. इस टीले के नीचे 2 सुरंग स्थित हैं. इसी लाक्षागृह में कौरवों ने पांडवों को एक षडयंत्र के अंतर्गत जलाकर मारने का असफल प्रयत्न किया गया था. कहा जाता है कि पांडवों ने इस अग्निकांड से बचकर
निकलने के लिए इस टीले के नीचे स्थित इन्हीं सुरंगों का प्रयोग किया था.