मध्य प्रदेश के धार में स्थित ऐतिहासिक भोजशाला में हाईकोर्ट के आदेश के बाद से चल रहे सर्वे का आज 89वां दिन है. पुरातत्व विभाग की निगरानी में चल रहा सर्वेक्षण वैज्ञानिक पद्धति से चल रहा है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की 8 सदस्यीय टीम 44 मजदूरों के साथ इस सर्वे का काम कर रही है. सर्वे का ये काम याचिकाकर्ताओं की मौजूदगी में किया जा रहा है. ASI को जुलाई के पहले हफ्ते में सर्वे की रिपोर्ट कोर्ट में पेश करनी है. इस लिहाज से अब सिर्फ 15 दिन का वक्त बचा है.
सर्वे में पिछले दिनों शिलालेख और स्तंभ के टुकड़े मिले थे. अब इन टुकड़ों पर बनी नक्काशी की जांच की जाएगी. फिलहाल अभी गर्भगृह के उत्तरी पूर्व दिशा में मिट्टी हटाने का काम किया जा रहा है. साथ ही यहां मिले अवशेषों की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की जा रही है.
भोजशाला में हनुमान चालीसा का पाठ
आज मंगलवार का दिन होने की वजह से भोजशाला में हिंदू समाज के लोग हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे. सर्वे की वजह से भोजशाला में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है. परिसर में मोबाइल या फिर कोई भी इलेक्ट्रॉनिक गैजट ले जाने की इजाजत नहीं है.
इससे पहले अप्रैल में भोजशाला के साइंटिफिक सर्वे के दौरान सामने आए नए तथ्यों के आधार पर हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि यहां मौजूद गर्भगृह की तीन सीढ़ियां और दीवार में दबा गोमुख भी मिला है. हिंदू पक्ष की अर्जी पर मध्य प्रदेश में इंदौर हाईकोर्ट के निर्देश पर भोजशाला का साइंटिफिक सर्वे 22 मार्च से शुरू हुआ है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक्सपर्ट, जीपीएस-जीआरएस, कार्बन डेटिंग के लिए खुदाई कर रहे हैं. सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला होगा कि भोजशाला की इमारत मूल रूप से मस्जिद है या फिर मंदिर है.
भोजशाला का इतिहास
मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि यहांय वागदेवी (मां सरस्वती) का मंदिर था. जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां कमाल मौलाना मस्जिद है. हिंदू पक्ष का दावा है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है. भोजशाला केंद्र सरकार के अधीन एएसआई का संरक्षित स्मारक है. एएसआई ने अप्रैल, 2003 में एक आदेश में हिंदुओं को हर मंगलवार परिसर में पूजा करने और हर शुक्रवार को मुसलमानों को यहां नमाज अदा करने की इजाजत दे दी.
भोजशाला मंदिर को राजा भोज (1000 से 1050ईस्वी ) ने बनवाया था. जो परमार वंश के महान शासक थे. 1000 से 1050ईस्वी तक अपने शासन के दौरान उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां महाविद्यालय की स्थापना की. इसी महाविद्यालय में मां सरस्वती का मंदिर भी था. इस मंदिर का जिक्र उस वक्त के राजकवि मदन ने अपने नाटक में भी किया है. साल 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर हमला किया. 1401 ईस्वी में दिलवार खान गौरी ने फिर 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने इसके दूसरे हिस्से में मस्जिद बनवाई. 19वीं शताब्दी में खुदाई के दौरान यहां मां सरस्वती की मूर्ति मिली. जिसे लॉर्ड कर्जन 1902 ई. में भोजशाला से इंग्लैण्ड के लंदन संग्रहालय में रख दिया. (तस्वीर साभार – भोजशाला मां सरस्वती मंदिर धार फेसबुक पेज से साभार)