एक बहुत गरीब व्यक्ति था। वह दिनभर बहुत नामजप करता था। भगवान उसके द्वारा किए गए नामजप से प्रसन्न हो गए और एक दिन उसके सामने प्रकट हो गए। भगवान उससे बोले – मैं तुम्हारे द्वारा किए जानेवाले नामजप से बहुत प्रसन्न हूं, तुम्हें जो चाहिए, वह मांग लो।
उसको लालच आ गया और उसने सोने की मुद्राएं मांग लीं। भगवान ने उससे पूछा – सोने की मुद्राएं किस पात्र में लोगे?
उसने अपनी झोली आगे फैला दी। भगवान ने झोली में सोने की मुद्राएं डालने से पहले कहा कि जब तक तुम सोने की मुद्राएं मांगना बंद नहीं करोगे, तब तक मैं तुम्हारी झोली में मुद्राएं डालता रहूंगा; परन्तु मेरी एक शर्त है ये सोने की मुद्राएं भूमि पर नहीं गिरनी चाहिए। यदि भूमि पर गिरीं, तो ये मुद्राएं मिट्टी की बन जाएंगी।
उसने भगवान की बात मान ली। और भगवान उसकी झोली में सोने की मुद्राएं डालने लगे। झोली भरती ही जा रही थी, लेकिन उसका लालच भी बढता ही जा रहा था। वह जान रहा था कि सोने की मुद्रओं के भार से झोली अब कभी भी फट सकती है; परंतु लालच के कारण वह बस, नहीं बोल पा रहा था। उसका मुद्राएं लेने का लालच और अधिक बढता ही जा रहा था और अंत में सोने की मुद्राओं का भार वह झोली नहीं सह पाई और फट गई। झोली के फटते ही सभी मुद्राएं भूमि पर गिर पडीं और मिट्टी की बन गईं।
मन में लालच होने के कारण इतनी मुद्राएं मिलने के बाद भी वह गरीब गरीब का गरीब ही रह गया। हम सभी जानते हैं कि लालच बुरी बला है और इससे बच पाना आसान भी नहीं है। लेकिन साधकों को ऐसी कहानियों से प्रेरणा मिलती है और इस वृत्ति पर विजय प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
एक बात और है:- संतों का कहना कि साधकों को विशेष रूप से यह धारण करने की आवश्यकता है कि यदि कभी हम पर भी भगवान की ऐसी कृपा हो जाए तो फिर हमको भगवान से संसार नहीं मांगना चाहिए बल्कि यही निवेदन करना चाहिए कि हमको आप ही चाहिए और आपके सिवा कुछ भी नहीं चाहिए।