मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह परिसर मामले में मुस्लिम पक्ष को झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने 14 दिसंबर के फैसले
में इस परिसर का सर्वे (तीन अधिवक्ता आयुक्तों की टीम से सर्वे) कराने का आदेश दिया था. हालांकि इस आदेश में सर्वे कब शुरू होगा इसकी कोई तारीख नहीं बताई गई थी. इस पर मुस्लिम पक्षकारों ने हाईकोर्ट के इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. जिस पर देश की सर्वोच्च अदालत ने रोक लगाने से मना कर दिया है और अब 18 दिसंबर को इस मामले में अगली सुनवाई होगी. जिसमें सर्वे की तारीख, सर्वे के तरीके और सर्वे करने वाली टीम के सदस्यों के नाम फाइनल होंगे.
क्या है विवाद ?
श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह परिसर का सर्वे वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर जैसा ही होगा. सर्वे करनी वाली टीम इस परिसर में हिंदू पक्ष के दावे की पड़ताल करेगी और उसी आधार पर कोर्ट में रिपोर्ट देगी. बता दें कि इस परिसर की 13.37 एकड़ जमीन पर विवाद है. इसमें 11 एकड़ में मंदिर है, जबकि 2.37 एकड़ में शाही ईदगाह मस्जिद है. ऐसा दावा किया जाता है कि करीब साढ़े तीन सौ साल पहले 1670 में मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन के दौरान ठाकुर केशव देव मंदिर को तोड़कर इसी जगह पर मस्जिद बनाई गई. इस मस्जिद के इस्तेमाल में मंदिर के ही मलबे का इस्तेमाल किया गया…. यही वजह है हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद में मंदिर की मौजूदगी के सबूत हैं. जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि मस्जिद में हिंदू प्रतीक या फिर मंदिर होने के कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं.
श्रीकृष्ण जन्मस्थान का इतिहास और औरंगजेब का आदेश
गजनी के सेनापति मीर मुंशी अल उताबी ने अफनी किताब तारीख-ए-यमिनी में मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिर के बारे में लिखा कि ये भव्य मंदिर ऐसा लगता है कि इसका निर्माण फरिस्तों ने कराया होगा. गजनी ने इस मंदिर को तोड़वा दिया. इसके बाद मथुरा के राजा महाराजा विजयपाल देव के शासन के दौरान (साल 1150) जज्ज नाम के किसी शख्स ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर नया मंदिर बनवाया. जिसे सिकंदर लोदी के शासनकाल में एक बार फिर तोड़ा गया. इतिहासकार आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव की किताब मुगलकानी भारत के मुताबिक श्रीकृष्ण के जन्मस्थल पर मौजूदा राजा वीर बुंदेला द्वारा बनवाए गए मंदिर को (बाकी बड़े मंदिरों की तरह ही ) औरंगजेब के आदेश के बाद उसकी विशेष फौज की मौजूदगी में तोड़वाया गया था. न केवल मंदिर को तोड़ा गया बल्कि विग्रहों को आगरा की बेगम साहिबा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबवा दिया गया. कहा जाता है कि सोने की परत से ढंका मंदिर इतना ऊंचा था कि 36 मील दूर आगरा से भी दिखाई देता था. इस मंदिर की ख्याति से औरंगजेब नाराज था.