आज गुरु नानक देव की 555वीं जयंती है. उनकी शिक्षाएं और उनके प्रसंग और उनसे जुड़ी कहानियां हमें जीवन जीने का सलीका सिखाती हैं. गुरु नानक जी की मक्का यात्रा से जुड़ी एक कहानी हमें धर्म-मजहब से जुड़ी एक बड़ी सीख देती. जो सभी धर्मों का सार भी है. गुरु नानक जी को उनके एक मुस्लिम शिष्य ने इस्लाम में मक्का यात्रा के बारे में बताया. इस शिष्य का नाम नाम मरदाना था. उनके ही अनुरोध करने पर गुरु नानक ने मक्का की यात्रा का फैसला किया.
मरदाना- कोई भी मुसलमान तब तक सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता जब तक वो अपनी जिंदगी में मक्का नहीं जाता है.
मरदाना की बात सुन कर गुरु नानक ने मक्का जाने का फैसला किया और अपने शिष्यों के साथ हाजी के भेष में मक्का रवाना हो गए. जब वो लंबी यात्रा के बाद मक्का पहुंचे तो काफी थक गए थे. वो शिष्यों के साथ हाजियों के लिए बनी आरामगाह में रुक गए और मक्का की तरफ पैर करके लेट गए. यह देख कर हाजियों की सेवा करने वाले सेवादार जियोन उन पर नाराज हो गया.
जियोन– ऐ फकीर, तुम्हे दिखता नहीं क्या, तुम मक्का-मदीना की तरफ अपना पैर करके लेटे हुए हो. अपने पैर ठीक करो.
गुरु नानक लंबी यात्रा के बाद बहुत थके हुए थे. उन्होंने बहुत ही प्यार से कहा.
गुरु नानक – इतने गुस्से से बात क्यों कर रहे हो. मैं बहुत थका हुआ हूं. तो तुम ही मेरे पैर उस ओर कर दो जिस तरफ खुदा ना हो.
इस पर वहां मौजूद लोगों ने गुरु नानक जी के पैर घुमाकर काबा से उल्टी दिशा की ओर कर दिया. लेकिन जैसे ही उन्होंने पैर को घुमाकर छोड़ा, उन्होंने देखा कि काबा उसी ओर था जिस तरफ उन्होंने उनके पैर घुमाकर रखे थे. इस घटना के बाद गुरु नानक की बात का इशारा जियोन को समझ में आ गया. उनकी बात का मतलब ये था कि खुदा या ईश्वर केवल एक दिशा में नहीं होता. वो तो हर दिशा में होता है.
गुरु नानक – अच्छे कर्म करो और खुदा को याद करो, यही सच्चा सदका है.
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव की मक्का यात्रा का जिक्र सिंयाथो बाबा नानक शाह फकीर (हाजी ताजुद्दीन नक्शबंधी द्वारा) और जैन-उ-लबदीन की किताब तारीख अरब ख्वाजा में मिलता है. मरदाना के साथ ही गुरु नानक जी ने करीब 28 साल में दो उपमहाद्वीपों में 5 प्रमुख यात्रा (उदासी) की थी. मक्का की यात्रा उनकी चौधी उदासी थी. उन्होंने म्यांमार के घने जंगलों, तिब्बत, इराक में सुमेरु पर्वत, मक्का, बगदाद, अचल बटाला और मुल्तान की भी यात्रा की. इस दौरान उन्होंने विरोधी विचारधारा वाले समूहों के साथ धार्मिक चर्चा भी की. यह यात्राएं पंद्रहवीं शताब्दी में की गईं.