फरवरी में पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव में पहली बार कोई हिंदू महिला चुनाव लड़ रही है. डॉ सवीरा प्रकाश ने खैबर पख्तूनख्वा के बुनेर जिले से अपना नामांकन (पाकिस्तान पीपल्स पार्टी उम्मीदवार ) दाखिल किया है. खैबर पख्तूनख्वा वो इलाका है जहां अल्पसंख्यकों के खिलाफ सबसे ज्यादा हिंसा होती है. बता दें कि पिछले दिनों पाकिस्तान में चुनाव आयोग ने एक आदेश जारी किया. जिसके मुताबिक सामान्य सीटों से हर पार्टी को कम से कम 5 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों को चनाव लड़ाने को कहा गया. जिसके बाद पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. इस वक्त पाकिस्तान और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में डॉ सवीरा प्रकाश के चुनाव लड़ने की खबरें छाई हुई हैं. इसे एक उम्मीद के तौर पर भी लिया जा रहा है कि शायद इससे हालात बदलें और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाली हिंसा में कमी आए. हालांकि पाकिस्तान में हिंदुओं या फिर कहें कि अल्पसंख्यकों की स्थिति दिन प्रति दिन बदतर होती जा रही है. आए दिन उनकी बेटियों के साथ जबरन शादी कर ली जाती है, उन्हें अगवा कर लिया जाता है. हिंदू वहां किस हालात में हैं ये शायद दुनिया को बताने की जरूरत नहीं है.
पाकिस्तान में हिंदू महिला चुनाव जीत सकती है ?
डॉ.सवीरा प्रकाश का कहना है कि चुनाव जीतने के बाद वो पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की समस्याओं का समाधान करेंगी. उन्होंने कहा कि वो एक देशभक्त हिंदू हैं. अगर वो चुनाव जीतती हैं तो वह पाकिस्तान और भारत के बीच संबंधों को बेहतर करने में सकारात्मक भूमिका निभाने की कोशिश करेंगी. लेकिन सवाल ये है कि जिस देश में हिंदुओं के खिलाफ इतनी हिंसा हो रही हो वहां कोई हिंदू कैसे जीत सकता है.
पाकिस्तान में कैसी है अल्पसंख्यकों की स्थिति ?
2017 में पाकिस्तान की जनगणना के मुताबिक वहां 45 लाख हिंदू थे. पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 5 प्रतिशत है, जिनमें हिंदू 2.14 प्रतिशत और ईसाइ 1.27 प्रतिशत और अहमदिया 0.09 प्रतिशत (बाकी 96.47 प्रतिशत मुसलमान) हैं. जबकि आजादी के वक्त पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 20 प्रतिशत थी. जाहिर है इस कमी के पीछे हिंसा और जबरन धर्मपरिवर्तन ही है. राजनीतिक हक की बात करें तो पाकिस्तान का हाल बहुत बुरा है. यहां 5 लाख से ज्यादा अहमदिया मुसलमानों को वोट करने का हक नहीं है. क्योंकि उन्हें मुसलमान ही नहीं माना जाता. ऐसे में अल्पसंख्यकों के साथ क्या होता होगा. इसका अंदाजा लगाना आसान है. जबकि पाकिस्तान दावा करता है कि उसके यहां अल्पसंख्यकों को बराबरी का हक मिला हुआ है. मानवाधिकार संगठन तो कहते हैं कि पाकिस्तान का चुनावी सिस्टम ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ है.