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Mahashivaratri : शिवलिंग के प्रकट होने की कथा

Anju Pankaj Desk, February 25, 2025February 25, 2025

The story of the appearance of Shiv linga : महाशिवरात्रि को शिवलिंग के प्रकट होने के दिन के रूप में मनाया जाता है. शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा भी अद्भुत है. इस कथा का जिक्र शिव पुराण और भागवत पुराण में मिलता है. भागवत पुराण के मुताबिक जब सृष्टि का निर्माण हुआ तो भगवान विष्णु जी और ब्रह्मा जी में इस बात को लेकर बहस हो गई कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है. इस विवाद को शांत करने के लिए आकाश में एक विशाल पत्थर (शिवलिंग) दिखा. इसके बाद शिवजी ने उन दोनों से कहा कि आप दोनों में से जो इस दिव्य पत्थर को छोर (अंत) खोज लेगा वो ही श्रेष्ठ माना जाएगा. भगवान विष्णु जी और ब्रह्मा जी दोनों पत्थर के अलग-अलग दिशा में उसका छोर तलाशने निकल गए.

काफी देर तक तलाशने के बाद भी दोनों को उस पत्थर का अंत नहीं मिला. विष्णु जी ने तो हार मान ली, लेकिन ब्रह्मा जी ने खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए झूठ का सहारा लिया. उन्होंने केतकी के पौधे से भी झूठ बोलने को कहा. इसके बाद ब्रह्मा जी ने दावा किया कि उन्होंने इस पत्थर का अंत (छोर) तलाश लिया है. ये बात आप केतकी के पौधे से पूछ सकते हैं. केतकी के पौधे ने भी उन दोनों के सामने झूठ बोल दिया.

ब्रह्माजी के इस झूठ से शिवजी नाराज हो गए. उन्होंने ब्रह्माजी से कहा कि आपने अपनी श्रेष्टता साबित करने के लिए झूठ बोला इसलिए अब आपकी कहीं पूजा नहीं होगी और केतकी ने आपके इस झूठ में साथ दिया, इसलिए इसके फूल मुझे अपनी पूजा में स्वीकार नहीं होगा. शिवलिंग के प्रकट होने के दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है.

ब्रह्मांड का प्रतीक है शिवलिंग

शिवलिंग को ब्रह्मांड और उसकी ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक शिवलिंग हमें बताता है कि संसार मात्र पौरुष और प्रकृति का वर्चस्व है और दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. इसकी पूजा करने से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है. शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने की वजह से इस लिंग कहा जाता है. यहां लिंग शब्द का मतलब प्रतीक, चिन्ह या फिर निशानी है. स्कंद पुराण के मुताबिक आकाश स्वयं लिंग है. धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने की वजह से इसे लिंग कहा गया है.

लंका पर चढ़ाई से पहले श्रीराम ने की थी शिवलिंग की पूजा

त्रेतायुग में माता सीता की तलाश में जब श्रीराम लंका पर वानरों की सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने की तैयारी में थे. उस वक्त उन्होंने शिवलिंग बनाकर शिवजी की पूजा की थी. उनकी पूजा से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद दिया था. इस दौरान श्रीराम ने शिवजी से अनुरोध किया था कि वो जनकल्याण के लिए ज्योतिलिंग के रूप में यहां सदैव निवास करें. भगवान शिव ने उनकी इस विनती को स्वीकार कर लिया. इस जगह पर उस शिवलिंग की पूजा रामेश्वरम के रूप में की जाती है.

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