इससे पहले ही हम आपको वो कहानी बताएं जो हर हिंदू को जाननी चाहिए. उससे पहले यह बताना जरूरी है कि अयोध्या में रामजन्मभूमि के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला जिस आधार पर सुनाया है. उसका इस घटना से गहरा संबंध है. दरअसल यह कहानी है एक युद्ध की जो रामजन्म भूमि की रक्षा के लिए सिखों द्वारा लड़ी गई थी. मुगल सेना से लड़े गए इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह की निहंग सेना ने साधुओं के साथ मिलकर रामजन्मभूमि की रक्षा की थी. ये कहानी इसलिए भी अहम है क्योंकि इन घटनाओं के जरिए हिंदू पक्ष सुप्रीम कोर्ट में साबित कर पाया कि असल में मस्जिद वाली जगह ही रामजन्मभूमि है. क्योंकि इतिहास में इसके लिए सिखों ने हिंदुओं के लिए मुगलों से लड़ाई लड़ी थी.
जब मुगलों की सेना से सिखों ने रामजन्मभूमि को आजाद कराया
सन 1528 में मुगल आक्रमणकारी बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया गया था. जैसे ही अयोध्या में बाबा वैष्णवदास को मुगल सेना के हमले की खबर लगी उन्होंने गुरु गोविंद सिंह से मदद मांगी. इस पर गुरु गोविंद सिंह ने आनंदपुर साहिब से निहंग सेना भेजी. जिसने साधुओं के साथ मुगलों की सेना के साथ जबरदस्त युद्ध लड़ा. जिसमें औरंगजेब की सेना को हार का सामना करना पड़ा. सिखों ने रामजन्मभूमि को आजाद करवाया और साधु-संतों को इसे सौंपकर वापस चले गए. 1858 में सिखों का जत्था इस विवादित जगह में दाखिल हुआ और इस जगह को 14 दिन तक कब्जे में रखा. बाबा फकीर सिंह खालसा ने यहां दाखिल होकर गुरु गोविंद सिंह और भगवान राम के नारे लगाए. यही नहीं उन्होंने यहां हवन कुंड खोदकर हवन भी किया. इस घटना पर अवध के थानेदार ने सिखों के खिलाफ FIR भी दर्ज की थी.
जन्मभूमि केस में गुरु गोविंद सिंह की अयोध्या यात्रा बनी अहम सबूत
मां और मामा के साथ पटना से आनंदपुर जाते समय गुरु गोविंद सिंह जी अयोध्या भी गए थे. इस वक्त उनकी उम्र 6 साल थी. उन्होंने यहां रामलला के दर्शन भी किए थे. सरयू के तट पर ब्रह्मकुंड गुरुद्वारे के पास दुखभंजनी कुएं में अयोध्या आने पर सिख गुरु नानकदेव जी ने स्नान किया था. असम से पंजाब जाते वक्त (विक्रमी संवत 1725 में) नौवें गुरु तेगबहादुर जी ने यहां मत्था टेका और 2 दिन तक तपस्या की. संवत 1726 में गुरु गोविंद सिंह भी यहां आए थे.