चेहरे पर झलकता तेज, माथे पर तिलक, मनमोहन मुस्कान, भगवान विष्णु के दशावतार के आभामंडल से घिरे, श्यामल रंग में रामलला कमल के पुष्प पर सवार होकर आ चुके हैं. गर्भगृह में स्थापित होने के साथ ही उन्होंने अपने दिव्य दर्शन दिए हैं. बेहद सौम्य नजर आ रहे रामलला को स्थापित किए जाने के बाद आंख पर पट्टी बांध दी गई है. 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी मूर्ति की आंख में बंधी पट्टी को हटाएंगे. 4.24 फीट ऊंची, तीन फीट चौड़ी और करीब 200 किलोग्राम वजनी यह मूर्ति श्याम शिला से बनाई गई है. इस पत्थर की उम्र हजारों साल होती है. जिसपर पानी, चंदन, रोली लगाने का कोई असर नहीं होता. कृष्ण शैली में बनी इस मूर्ति में रामलला 5 साल के दिखाए गए हैं. जो अपने हाथ में तीर और धनुष लिए हुए है. उनमें बालत्व, देवत्व और राजकुमार तीनों की छवि दिखाई गई है. मूर्ति के ऊपर स्वास्तिक, ऊं, चक्र, गदा और सूर्य भगवान को स्थापित किया गया है. वहीं मूर्ति के नीच एक तरफ उनके भक्त हनुमान, दूसरी तरफ विष्णु जी के वाहक गरुड़ जी को जगह दी गई है.
क्यों चुना गया श्याम रंग?
बहुत से श्रद्धालुओं के मन में सवाल है कि आखिर रामलला की मूर्ति का रंग श्याम यानी सांवला क्यों है. दरअसल, रामायण में श्रीराम का वर्ण श्याम बताया गया है. उनकी स्तुति में भी उन्हें नीलकमल के समान श्याम बताया गया है. यही वजह है कि ये मूर्ति कर्नाटक से आई श्याम शिला से बनाई गई. जिसे कर्नाटक के ही प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज ने ही बनाया है. वैसे तो राम मंदिर के गर्भगृह के लिए तीन मूर्तियों का निर्माण कराया गया था. लेकिन तीनों मूर्तियों के बनने के बाद अरुण योगीराज की मूर्ति को गर्भगृह के लिए फाइनल किया गया. अरुण योगीराज के अलावा मूर्तिकार गणेश भट्ट ने भी एक मूर्ति श्याम शिला से बनाई और तीसरी मूर्ति, मूर्तिकार सत्यनारायण पांडे ने राजस्थानी शिला से बनाई. अरुण योगीराज की मूर्ति तो गर्भगृह में स्थापित हो गई है. लेकिन बाकी दो मूर्तियों की स्थापना मंदिर के प्रथम तल में होगी. वहीं 1949 से रामलला की जिस मूर्ति की पूजा की जा रही है. उन्हें गर्भगृह में ही जगह मिलेगी. क्योंकि जन्मभूमि का मुकदमा कोर्ट में उन्होंने ही जीता था.
रामलला की 5 साल के बालरूप की ही प्रतिमा क्यों चुनी गई?
भगवान राम का मंदिर उस जगह पर बन रहा है, जहां भगवान का जन्म हुआ था. ऐसे में श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अधिकारियों ने सलाह दी कि मूर्ति बालरूप में होनी चाहिए जिसे देखकर एक माता में ममता जागे. इस सुझाव को माना गया. इसलिए भगवान की 5 साल के बालरूप की प्रतिमा बनवाई गई. बता दें कि अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले उसका अनुष्ठान शुरू हो चुका है. जो 22 जनवरी तक जारी रहेगा. उधर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 11 दिनों का अनुष्ठान कर रहे हैं. इसके लिए वो यम-नियम का पालन कर रहे हैं. जिसके तहत प्रधानमंत्री भी जमीन पर कंबल बिछाकर सोते हैं और सिर्फ नारियल पानी ही पी रहे हैं. बता दें कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री मोदी के हाथों होगी. प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रधानमंत्री मोदी समेत 8000 लोग शामिल होंगे. इस समारोह के लिए देश की नामी हस्तियों को आमंत्रित किया गया है. प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए अयोध्या आने वाले हजारों भक्तों के ठहरने के लिए टेंट सिटी बनाई जा रही है. जहां 10 हजार से 15 हजार लोगों के लिए व्यवस्था की गई है. जो लोग रात में वहां रुकना चाहते हैं. उन्हें रहने की जगह उपलब्ध कराई जाएगी. वहीं अयोध्या के साथ-साथ पूरे देश में इसे एक त्यौहार के रूप में मनाया जाएगा. मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा भी उन्हीं के हाथों होगी. देश के साढ़े पांच लाख मंदिरों में कार्यक्रम होंगे, जहां 7 करोड़ से अधिक परिवार पूजन-अर्चन करेंगे. महाराष्ट्र के सभी मंदिरों में दीपोत्सव का आयोजन किया जाएगा. साथ ही राम नाम का जप किया जाएगा. 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर आम लोगों में जबरदस्त उत्साह को देखते हुए केंद्र सरकार के कार्यालयों में इस दिन आधे दिन की छुट्टी की घोषणा की गई है.