अयोध्या में बना भव्य राममंदिर यूं ही नहीं बना. इसके पीछे लंबा सामूहिक संघर्ष, त्याग और कुर्बानियां भी शामिल रही हैं. आज जब मंदिर बनकर तैयार है और रामलला विराजमान होने जा रहे हैं, तब उन कुर्बानियों को भी याद किया जाना जरूरी हो जाता है. चाहे सीने पर गोली खाने वाला कारसेवक हो या फिर वो साधु-संत जो पूजा-पाठ छोड़कर राम मंदिर को बचाने के लिए मुगलों की सेना से बिना किसी हथियार के भिड़ गए. लेकिन ऐसे ही कुछ और लोग थे, जिनका धर्म ही अलग था, लेकिन भगवान राम के लिए उनके जज्बात हिंदुओं से कम नहीं थे. यही वजह थी राम मंदिर के लिए मुगलों से पहली लड़ाई साधु-संतों के साथ मिलकर सिखों की सेना ने लड़ी.
बात 1858 की है, देश में आजादी के लिए की गई 1857 की क्रांति नाकाम हो चुकी थी. लेकिन आजादी के साथ-साथ कुछ लोगों में रामजन्मभूमि की आजादी पाने की छटपटाहट जितनी हिंदुओं में थी उतनी ही कुछ सिखों में भी थी. यही वजह थी कि निहंग सिख फकीर सिंह खालसा अपने 25 बहादुर सैनिकों के साथ अयोध्या पहुंचे और मंदिर की जगह पर बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया. यही नहीं उन्होंने यहां रामलला की पूजा शुरू करवाई. वीर फकीर सिंह खालसा यहां करीब 2 महीने तक रहे. क्योंकि अंग्रेजों ने उन्हें जबरन बाहर निकाल दिया. फकीर सिंह खालसा को मानो राम की धुन सवार थी. उस वक्त तो वो हट गए लेकिन बाद में फिर आए साल 1860 में यहां काबिज रहे.
1858 में दर्ज एक FIR के मुताबिक बाबा फकीर सिंह खालसा सिख गुरु गोविंद सिंह की जयकार करते हुए मंदिर की जगह बनाई गई मस्जिद में घुस गए और भगवान राम का प्रतीक चिन्ह वहां लगा दिया. यही नहीं दीवारों पर राम का नाम लिख दिया. उन्होंने यहां एक चबूतरा बनाकर श्रीराम की मूर्ति भी रख दी. एक दिसंबर, 1858 को अवध के थानेदार द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय प्रशासन ने उन्हें चेतावनी भी दी थी. लेकिन वो अपनी जगह से हटे नहीं. बाबा फकीर सिंह खालसा ने प्रशासन के लोगों से कहा कि ये जगह निरंकार यानी परमात्मा की है.
मंदिर को तोड़कर बनाई गई मस्जिद के मुअज्जिन द्वारा अवध प्रशासन को दी गई शिकायत में कहा गया कि – निहंगों द्वारा रातों-रात चबूतरे का निर्माण करने की वजह से इलाके में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया है. नवंबर, 1860 में डिप्टी कमिश्नर (अवध) को दी गई एक दूसरी शिकायत में कहा गया कि मस्जिद में अजान पढ़े जाते वक्त निहंगों द्वारा शंख बजाया जाता है. बता दें कि बाबा फकीर सिंह खालसा और निहंगों पर दर्ज हुई इस FIR को रामजन्मभूमि केस में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक दस्तावेज की तरह पेश किया गया. जिसने केस को मंदिर के पक्ष में फैसला आने में काफी मदद की. इस तरह बाबा फकीर सिंह खालसा का साहस और उनकी बहादुरी ने अयोध्या में राममंदिर का रास्ता प्रशस्त किया. हम सभी हिंदुओं को उनको दिल से प्रणाम और धन्यवाद कहना चाहिए. बल्कि हम सभी उनके कर्जदार हैं.
जब मुगलों की सेना से सिखों ने रामजन्मभूमि को आजाद कराया
बाबा फकीर सिंह खालसा से पहले सन 1528 में मुगल आक्रमणकारी बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया गया था. जैसे ही अयोध्या में बाबा वैष्णवदास को मुगल सेना के हमले की खबर लगी उन्होंने गुरु गोविंद सिंह से मदद मांगी. इस पर गुरु गोविंद सिंह ने आनंदपुर साहिब से निहंग सेना भेजी. जिसने साधुओं के साथ मुगलों की सेना के साथ जबरदस्त युद्ध लड़ा. जिसमें औरंगजेब की सेना को हार का सामना करना पड़ा. सिखों ने रामजन्मभूमि को आजाद करवाया और साधु-संतों को इसे सौंपकर वापस चले गए.
निहंग बाबा फकीर सिंह के वंशजों ने अयोध्या में शुरू की लंगर सेवा
बाबा फकीर सिंह खालसा के वंशजों ने अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में लंगर सेवा शुरू की है. उनकी आठवें वंशज हरजीत सिंह रसूलपुर का कहना है कि वह अपने निहंग साथियों के साथ अयोध्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुओं की सेवा करेंगे. उनका कहना है कि सिख धर्म और सनातन धर्म का रिश्ता गहरा है. सिखों ने हमेशा हिंदू धर्म की रक्षा के लिए आगे आए हैं. लेकिन विदेश में बैठे कुछ लोग इस भाईचारे को खत्म करना चाहते हैं. इस तरह आठ पीढ़ी बाद भी बाबा फकीर सिंह खालसा के वंशजों और निहंगों का भगवान राम के प्रति प्यार जस का तस कायम है. हम सभी हिंदू, निंहग सिख और बाबा फकीर सिंह के हमेशा कर्जदार रहेंगे.