सनातन धर्म के विरोध में डीएमके नेताओं की टिप्पणी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर सवाल उठाए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कांग्रेस से पूछा जाना चाहिए कि सनातन धर्म के खिलाफ इतना जहर उगलने वाले लोगों का साथ देने की उसकी क्या मजबूरी है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस जिसके साथ कभी गांधी जी जुड़े थे. वह कांग्रेस जिसकी इंदिरा गांधी सार्वजनिक रूप से गले में रुद्राक्ष की माला पहनती थीं, कम से कम कांग्रेस उसका तो लिहाज करे. प्रधानमंत्री ने पूछा कि क्या ऐसा किए बिना उसकी सियासत पूरी नहीं होगी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की मानसिकता में ये कैसी विकृति है- ये कांग्रेस के अंदर ही चिंता का विषय है.
कांग्रेस ने अपना मूल चरित्र खो दिया है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि डीएमके का जन्म शायद सनातन के लिए नफरत के साथ हुआ था. लेकिन सवाल उनका नहीं है, यह कांग्रेस जैसी पार्टी के बारे में है. क्या इसने अपना मूल चरित्र खो दिया है. उन्होंने कहा कि यह देश के लिए चिंता की बात है कि सनातन विरोधियों के साथ बैठना कांग्रेस की मजबूरी है.
डीएमके के सनातन विरोध में कांग्रेस की हामी?
उदयनिधि स्टालिन ने अपने बड़बोलेपन में कहा था कि – हम जिस तरह मच्छर, डेंगू, मलेरिया और कोरोना को समाप्त करते हैं. उसी तरह केवल सनातन धर्म का विरोध करना ही काफी नहीं है. इसे समाज से पूर्ण रूप से समाप्त किया जाना चाहिए. उदयनिधि यहीं नहीं रुके उन्होंने ये तक कह डाला कि सनातन धर्म की वजह से समाज के कुछ लोग मुश्किलें झेल रहे हैं. इस बयान पर भले ही कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने किनारा कर लिया हो. लेकिन उदयनिधि स्टालिन की पार्टी डीएमके उसी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है. जिसमें कांग्रेस भी शामिल है. जिस कांग्रेस को उदयनिधि के बयान की आलोचना करनी चाहिए थी, उसने सिर्फ एक बयान जारी कर खुद को इस बयान से अलग कर लिया.
लेकिन क्या उदयनिधि के इस अपमानजनक बयान के बाद बात खत्म हो जानी चाहिए थी. क्या इस बयान से कांग्रेस के किनारा कर लेने मात्र से बात खत्म हो जानी चाहिए. क्या इस बयान की तीखी आलोचना होने पर भी उदयनिधि जिस बेशर्मी से अपने बयान पर कायम रहे, कांग्रेस को उससे नाता तोड़ नहीं लेना चाहिए था. (तस्वीर साभार – राहुल गांधी के फेसबुक वॉल से साभार)