अजमेर दरगाह, शिवमंदिर के ऊपर बनाई गई है. यह दावा राजस्थान के अजमेर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दायर दीवानी वाद में किया गया है. हिंदू सेना की इस अर्जी में कोर्ट से मांग की गई है कि इसे भगवान श्री संकटमोचन महादेव विराजमान मंदिर घोषित किया जाए. इसके अलावा इस मंदिर परिसर पर दरगाह समिति द्वारा किए गए अवैध कब्जे को हटाया जाए. साथ ही साथ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को दरगाह का सर्वे करने के निर्देश देने की भी मांग की गई है. हिंदू सेना की अर्जी पर अब 10 अक्टूबर को सुनवाई होने की संभावना है.
मंदिर के ऊपर दरगाह होने के पीछे दलील
- मुख्य द्वार पर छत का डिजाइन हिंदू संरचना
- छतरियों की सामग्री और शैली का मूल हिंदू
- ऐतिहासिक विवरण में मंदिर होने का जिक्र
- तहखाने में महादेव की छवि
संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर को तोड़ कर बनी ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद ?
राजस्थान के अजमेर जिले में ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद, भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के मंदिर तोड़ने की मुहिम का शरुआती उदाहरण है. साल 1192 ईस्वी में मुहम्मद गोरी ने अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद अपने गुलाम सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को अजमेर के मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया. ऐसा दावा किया जाता है कि यह ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद एक विशाल संस्कृत महाविद्यालय था. जिसका नाम संस्कृत कंठभरन महाविद्यालय था. जिसे अजमेर (अजयमेरु) के क्षत्रिय राजा सम्राट विग्रहराज चौहान (विग्रहराज चतुर्थ – 1158 से 1163 ई.) ने बनवाया था. यह संस्कृत विद्यालय उस वक्त संस्कृत अध्ययन का बड़ा केंद्र था.
तोड़े गए मंदिर के खंडहरों से बनाई गई मस्जिद
जनश्रुतियों के मुताबिक, इस जगह पर अढ़ाई दिन में मस्जिद के नमाज का हिस्सा खड़ा कर दिया गया था. इसलिए इसका नाम ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ पड़ा. इस मस्जिद के लिए तोड़े गए हिंदू और जैन मंदिरों के खंडहरों का इस्तेमाल किया गया. बाद में इसे कुतुबुद्दीन ऐबक के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने 1213 में मस्जिद पूरी करवाई. हालांकि ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ में यह साफ नहीं है कि मंदिर का मूल हिस्सा और महाविद्यालय का मूल हिस्सा कौन-कौन सा है.
कई इतिहासकारों ने मंदिर होने का दावा किया
इन दावों की पुष्टि कई इतिहास करते हैं. 1871 में ASI के महानिदेशक रहे अलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham) ने इस जगह की निरीक्षण कर इसे हिंदू मंदिरों के खंडहरों से बनाया गया बताया था. कनिंघम ने लेफ्टिनेंट कर्नल जेम्स टॉड (Lt. Col. James Todd) का हवाला दिया था. टॉड ने इस इमारत को जैन मंदिरों के खंडहरों से बना बताया. इस जगह पर सालों तक कई प्राचीन मूर्तियों बिखरी पड़ी रहीं. 90 के दशक में ASI ने सारी मूर्तियों को एक सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट कर दिया. इतिहासकार सीता गोयल ने भी इसे मंदिरों की सामग्री का इस्तेमाल कर बनाई गई मस्जिद बताया. इसके लिए उन्होंने सैयद अहमद खान की किसाब असर-उस-सनदीद का हवाला दिया.