Caste Census : इस बार होने वाली जनगणना में जाति जनगणना अहम है. क्योंकि आजादी के बाद हो रही इस पहली जाति जनगणना में देश के मुसलमानों की भी जातियां गिनी जाएंगी. बता दें कि असम में हिमंत बिस्व सरमा की भारतीय जनता पार्टी की सरकार पहले ही मुसलमानों की जातीय जनगणना करा चुकी है.
भारत में मुसलमान तीन जाति समूहों में बंटा हुआ है. जिसमें अशराफ, अजलाफ और अरजाल हैं. अशराफ को उच्च जाति माना जाता है. जिसमें सैयद, शेख, रिजवी, पठान, मिर्जा, मुगल, खान, शामिल हैं. इसी तरह अजलाफ जिन्हें मुस्लिम ओबीसी माना जाता है. इन जाति में अंसारी, मंसूरी, राइन, कुरैशी शामिल हैं. वहीं अरजाल को मुस्लिम दलित माना जाता है, जिसमें हवारी, रज्जाक, हलालखोर, भटियारा, फकीर, शाह, नट, लालबेगी, बढ़ई, बंजारा, धोबी, मोची, रंगरेज, जोगी शामिल हैं.
ऐसा दावा किया जाता है कि मुसलमानों में जाति के आधार पर कोई ऊंच नीच का फर्क नहीं है. इस्लाम धर्म में सभी बराबर हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई इसके अलग है. हिंदुओं की तरह मुसलमानों में भी जाति का विभाजन है और इनमें भी ऊंच नीच उतना ही है जितना हिंदुओं में है. लेकिन हैरानी की बात है कि जाति जनगणना की पैरवी करने वाला विपक्ष हिंदुओं की जाति जनगणना की बात तो पूरे जोश से करता है. लेकिन मुसलमानों की जाति जनगणना पर खामोश हो जाता है.
इससे पहले महाराष्ट्र में जनसभा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों में जातियों की जनगणना के मुद्दे पर विपक्ष की खामोशी को लेकर उन पर निशाना साधा था. बता दें कि केंद्र सरकार ने देश में जातिगत जनगणना कराने का एलान किया है. केंद्रीय कैबिनेट ने जाति जनगणना को मंजूरी दे दी है. इस तरह अब आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना कराई जाएगी. ऐसा माना जा रहा है कि सितंबर में जाति गणना की शुरूआत हो सकती है. यह काम मूल जनगणना के काम के साथ-साथ ही होगा.