यूपी के प्रयागराज में आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के समर्थकों ने जमकर उत्पात मचाया. करीब डेढ़ घंटे तक पांच हजार समर्थकों ने करछना समेत कई इलाके में गाड़ियों में तोड़फोड़ की आगजनी की और जमकर पत्थर बरसाए. उनके समर्थकों में कानून का कोई खौफ नहीं था. वो बेखौफ घूम रहे थे और हर जगह तोड़फोड़ और आगजनी कर रहे थे. करीब पांच घंटे तक पूरे इलाके में लोग दहशत में रहे. समर्थकों की भीड़ गाड़ियों पर चढ़ कर गाड़ियों को पलट रही थी. आजाद के समर्थक इस कदर बेखौफ घूम रहे थे कि उन्होंने पुलिस की गाड़ियों में भी तोड़फोड़ की.
इस तोड़फोड़ और आगजनी की वजह से मची भगदड़ में कई महिलाएं और बच्चे घायल हो गए. स्थानीय लोगों का कहना है कि जानबूझ कर सवर्ण समाज की दुकानों में तोड़फोड़ की गई. चंद्रशेखर आजाद यहां पीड़ित परिवार से मिलने आए थे.
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर चंद्रशेखर के समर्थकों को कानून हाथ में लेने की इजाजत किसने दी. अगर प्रशासन ने आजाद को पीड़ितों से मिलने नहीं दिया तो क्या वो कानून को अपने हाथ में ले लेंगे. अगर प्रशासन ने चंद्रशेखर को पीड़ित परिवार से मिलने से रोका तो इसकी वजह भी तो है. ऐसा करने से कानून व्यवस्था प्रभावित हो सकती थी. फिर जब प्रदेश की योगी सरकार खुद पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है तो फिर चंद्रशेखर आजाद को बेवजह अपनी सियासत चमकाने के लिए लॉ एंड ऑर्डर को बिगाड़ने की क्या जरूरत थी. चंद्रशेखर आजाद को अगर अपनी सियासत ही चमकानी है तो मामले को संसद में उठाए सड़क पर उत्पात मचाने की क्या जरूरत है. निश्चित रूप से चंद्रशेखर आजाद और उनके समर्थकों को इसकी सजा मिलनी चाहिए और आम लोगों को हुए नुकसान की भरपाई इन उपद्रवियों से की जानी चाहिए.
हालांकि पुलिस ने भीम आर्मी के 20 से ज्यादा कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया गया है. लेकिन जिस तरह मीडिया रिपोर्ट में करीब पांच हजार समर्थकों द्वारा हिंसा की बात सामने आ रही है. ऐसे में इस बात का अंदेशा होता है कि यह हिंसा पूर्व नियोजित थी. क्या सिर्फ इस बात के लिए तोड़फोड़ और आगजनी की जानी चाहिए कि उन्हें पीड़ित परिवार से नहीं मिलने दिया गया. क्या सिर्फ इस बात के लिए इतने लोगों की जान आफत में डालना उचित था.
(तस्वीर – चंद्रशेखर आजाद फेसबुक पेज से साभार)