नेपाल में चल रहे घमासान के बीच एक पुराना दावा फिर से वायरल हो रहा है. इस दावे के मुताबिक साल 1951 में नेपाल भारत में विलय करना चाहता था. लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. यह दावा इन दिनों सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. इस दावे के मुताबिक 1950 के दशक में नेपाल में राणा शासन खत्म हो रहा था और राजशाही का प्रभाव बढ़ रहा था. इस दौरान राजा वीर विक्रम त्रिभुवन शाह ने नेहरू जी के सामने भारत में नेपाल के विलय का प्रस्ताव रखा था. लेकिन नेहरू जी ने इसे अस्वीकार कर दिया.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा द टर्बुलेंट इयर्स में इसका जिक्र किया है. उन्होंने इसमें लिखा है कि राजा वीर विक्रम त्रिभुवन शाह ने नेहरू जी के सामने विलय का प्रस्ताव रखा था. नेहरू जी मानना था कि भारत को एक मजबूत और स्वतंत्र पड़ोसी देश की जरूरत है. न कि अपने ही भूभाग में एक कमजोर और अशांत प्रांत की.
नेहरू जी की भूल
तमाम लोग ऐसा मानते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू आजादी के बाद कई बड़ी भूल की थी. इनमें अक्टूबर, 1947 में पाकिस्तानी हमले का जवाब देते हुए जब भारतीय सेना आगे बढ़ रही थी. तब उन्होंने एकतरफा युद्धविराम का एलान कर दिया और कश्मीर समस्या को यूएनओ में ले गए. इस गलती की वजह से देश का एक बड़ा हिस्सा पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) के रूप में हमारे सामने है और एक आतंकियों का गढ़ बना हुआ है और लगातार वहां ट्रेनिंग पाकर हमारे देश में आतंकी हमले करते हैं.
इसी तरह कश्मीर का पूर्ण विलय होने के बाद नेहरू जी ने शेख अब्दुल्ला के कहने पर धारा 370 संविधान में जोड़ कर कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया. इससे कश्मीर को अपना संविधान बनाने की इजाजत मिल गई. बाद में यही धारा सिरदर्द साबित हुई. जिसे बाद में मोदी सरकार ने हटाया. इसी तरह नेहरू जी ने 1954 में पंचशील समझौता किया, इससे तिब्बत को चीन का भाग मानना पड़ा.