22 जुलाई से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा के लिए यूपी सरकार द्वारा यात्रा के रूट की दुकानों, ढाबों पर दुकान मालिक का नाम और मोबाइल नंबर लिखने का आदेश जारी किया गया है. इस फैसले को सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाला और नफरत फैलाने वाला बताया जा रहा है. लेकिन क्या उन कावंड़ियों से पूछा गया कि उनके साथ क्या बीतती थी जब उनकी यात्रा के दौरान रास्ते में उन पर मांस के टुकड़े फेंके जाते थे. हिंदूओं से नफरत करने वाली जमात हिंदू देवी -देवताओं के नाम पर होटल और ढाबे खोलकर बैठे होते हैं और शुद्ध शाकाहारी के नाम पर मूत्र और थूक वाला खाना तीर्थयात्रियों को परोसते हैं.
इस्लामी अर्थव्यवस्था के लिए हलाल सर्टिफाइड
कांवड़ रूट पर हिंदू देवी देवताओं के नाम पर होटल और ढाबा चलाने वाले अपने लिए हलाल सर्टिफाइड का इस्तेमाल करते हैं. जिससे उनकी इस्लामिक अर्थव्यवस्था को मजबूती मिले. अपने मजहब में खूब प्रचारित किया जाता है कि हिंदुओं से कोई सामान नहीं खरीदें. अब हिंदू जब उनका थूक और मूत्र वाला खाना खाने से बचने का उपाय कर रहा है तो सभी को सामाजिक सौहर्द की याद आने लगी है. इस फैसले को नफरत फैलाने वाला बताया जा रहा है. लेकिन खाने में जो मूत्र और थूक मिलाया जा रहा उससे कौन सा प्यार फैल रहा, क्या इसका कोई जवाब देगा क्या. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी जैसे दलों को इस फैसले से ज्यादा चिंता हो रही है क्योंकि इससे उनके वोटर इससे प्रभावित हो रहे हैं. लेकिन इन सियासी पार्टियों को
हिंदू तीर्थयात्रियों की चिंता नहीं हो रही है.
पहचान छिपा कर होटल और ढाबे का कारोबार क्यों?
अगर ये कहा जा रहा है कि यूपी सरकार का यह फैसला संवैधानिक नहीं है. तब क्या कानून का फर्ज नहीं है कि हिंदू तीर्थयात्रियों को मूत्र और थूक वाले खाने से बचाने के लिए कुछ व्यवस्था बने. जाहिर है कि अब सरकार सभी दुकानों के खाने में मूत्र और थूक की चेकिंग तो कर नहीं सकती. जब एक खास पहचान वालों द्वारा ऐसा किए जाने की बातें हों तब तो दुकानों पर पहचान लिखी होने पर ही जाने जा सकेगे. ऐसे में अगर आपको एकतरफा और तथाकथित सामाजिक सौहार्द की ज्यादा फिक्र हो तो मूत्र और थूक वाला खाना खाइए और सबकुछ देखकर भी अंधे होने का नाटक कीजिए.