उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी के पूरे परिसर का सर्वे नहीं होगा. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने हिंदू पक्ष की अर्जी को खारिज कर दिया है. इस झटके के बाद अब हिंदू पक्ष हाईकोर्ट जाने की तैयारी में है. हिंदू पक्ष का कहना है कि पहले हुआ सर्वे अधूरा है. वजू खाना, सेंट्रल डो के नीच सर्वे नहीं हुआ है.
क्या है ज्ञानवापी विवाद?
हिंदू पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी के नीच 100 फीट ऊंचा आदि विश्नेशर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है. इस मंदिर का निर्माण करीब 2050 साल पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने करवाया था. जिसे 1664 में औरंगजेब ने तुड़वा दिया था और इसी स्थान पर मस्जिद बनाई गई. जिसे ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है. इसी दावे के आधार पर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे की मांग की गई थी. याचिकाकर्ताओं की मांग पर कोर्ट द्वारा कोर्ट कमिश्नर नियुक्ति किया गया और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से सर्वे करवाया गया.
17 जनवरी को इस तहखाने को जिला प्रशासन ने कब्जे में ले लिया था. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के सर्वे के दौरान यहां सफाई कराई गई और वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को तहखाने का कस्टोडियन नियुक्ति किया गया. 1991 में सोमनाथ व्यास ने जमीन पर मालिकाना हक जताते हुए वाद दाखिल किया था. उनका कहना था कि तहखाना उनके कब्जे में है तो साफ है कि पूरे प्लॉट पर (यानी ज्ञानवापी परिसर) उनका कब्जा है.
31 जनवरी, 2024 को वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी केस में हिंदू पक्ष को व्यास तहखाने में पूजा-अर्चना का हक दे दिया. इस आदेश के पालन के लिए अदालत ने प्रशासन को 7 दिन का वक्त दिया. यानी हिंदू पक्ष को पूजा के लिए बैरिकेडिंग हटाकर रास्ता देने की व्यवस्था करने को कहा गया. कोर्ट ने ये भी कहा कि वादी और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के पुजारी यहां पूजा करेंगे. ये तहखाना तथाकथित मस्जिद के नीचे है. जहां नवंबर 1993 तक पूजा-पाठ की जाती थी. अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद यहां ज्ञानवापी मस्जिद के चारों ओर बैरिकेडिंग लगा दी गई थी. इस वजह से यहां पूजा-पाठ भी रुक गया था. अब कोर्ट के आदेश के बाद सोमनाथ व्यास का परिवार तहखाने में पूजा-पाठ करेगा.