Prayagraj Maha Kumbh : अगले साल प्रयागराज में होने वाले विश्व के सबसे बड़े आर्थिक समागम में दुनिया भर से 40 से 50 करोड़ श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं. अगर आप भी इस महाकुंभ में शामिल होने का प्लान बना रहे हैं तो प्रयाग की इस पवित्र भूमि में संगम में स्नान और मेले के अद्भुत रंग देखने के साथ-साथ प्रयाग नगरी के अन्य प्रमुख तीर्थ स्थलों पर जरूर जाएं. महाकुंभ के दौरान प्रयाग आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए पूरी नगरी को सजाया जा रहा है. क्योंकि यहां आने वाले तीर्थयात्री प्रयाग की इस पुण्य धरा के सभी तीर्थों पर जरूर जाते हैं.
- लेटे हुए हनुमान जी और अक्षय वट
प्रयाग आने वाले तीर्थयात्री कुंभ मेला क्षेत्र में संगम में स्नान के बाद पास में लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर में दर्शन करना नहीं भूलते. यहां बजरंगबली आराम की मुद्रा में विराजमान. हनुमान जी की इस मुद्रा में यह अकेला मंदिर है. हर बार मानसून के दौरान बाढ़ आने पर गंगा माता, हनुमान जी को स्नान करवाने जरूर आती है. संगम के निकट बने अकबर के किले के कैंपस में श्रीअक्षय वट मंदिर है. जहां पवित्र विशाल अक्षय वट मौजूद है. यह वट सृष्टि और प्रलय का साक्ष्य है. ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष के एक पत्ते पर भगवान बालरूप में सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं. जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभ देव ने अक्षय वट के नीचे ही ज्ञान प्राप्त किया था. - अलोपी देवी मंदिर
देवी मां के 51 शक्तिपीठों में से एक अलोपीदेवी मंदिर, प्रयागराज का प्रमुख तीर्थ स्थल है. प्राचीन कथा के मुताबिक जब देवी सती के पिता दक्ष के घर पर उनके पति महादेव शिव का अपमान होने पर जब देवी सती ने यज्ञ का अग्नि में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए तो शिव जी क्रोधित होकर देवी सती के मृत शरीर को हाथों में लेकर तांडव करने लगे. इस तांडव ने दुनिया नष्ट ना हो जाए इसलिए भगवान विष्णु ने देवी सती के शरीर के टुकड़े कर दिए. देवी के कटे हुए अंग जहां जहां गिरे वहां वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए. प्रयागराज में देवी सती के हाथ का पंजा कटकर गिरा लेकिन यहां ये पंजा एक कुंड में गिरते ही अलोप (गायब) हो गया. इसलिए इस शक्तिपीठ का नाम अलोपशंकरी पड़ा. - वेणीमाधव मंदिर
प्रयागराज के नगर देवता वेणी माधव का प्राचीन मंदिर में प्रयाग आने वाले तीर्थयात्री अवश्य जाते हैं. इन्हें संगम और माघ मेले का रक्षक भी माना गया है. माघ महीने में यहां भक्तों की भीड़ होती है. प्राचीन कथाओं के मुताबिक प्रयाग में सृष्टि का पहला यज्ञ हुआ था. जिसमें सभी देवता भी शामिल हुए. इस दौरान ब्रह्मा जी ने विष्णु जी से इस मेले की रक्षा करने को कहा. इसलिए भगवान विष्णु माधव के रूप में यहां स्थापित हुए. ऐसी मान्यता है कि वेणी माधव खुद मेला क्षेत्र की रक्षा के लिए विचरण करते हैं. प्रयागराज में द्वादश माधव विराजमान हैं. इस मंदिर की प्रतिमा दुर्लभ है. जिसमें शालीग्राम शिला में बनी वेणी माधव जी की प्रतिमा के साथ त्रिवेणी जी की मूर्ति भी है. - नागवासुकी मंदिर
ऐसा माना जाता है कि प्रयागराज के नागवासुकी मंदिर के दर्शन के बगैर संगम का स्नान अधूरा है. यहां नागपंचमी पर भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. काल सर्प दोष और विष बाधा से मुक्ति के लिए लोग यहां प्रार्थना करते हैं. इस जगह को संपूर्ण सर्प जाति के स्वामी भगवान तक्षक और नागराज वासुकि का मूल निवास माना गया है. यह मंदिर संगम के पास ही है. मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद नागराद वासुकी लहूलुहान हो गए थे. तब भगवान विष्णु ने उन्हें प्रयागराज में इस जगह पर विश्राम करने की सलाह दी थी.
5.हंसकूप
प्रयागराज में हंसकूप का जल पीने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल और यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. मतस्य पुराण में हंसकूप का जिक्र मिलता है.
इसके अलावा प्रयागराज में भारद्वाज आश्रम, दुर्वासा आश्रम (झूंसी के काकरा गांव में) भी जाने का प्लान बना सकते हैं. त्रेता युग में भगवान श्रीराम, माता सीता और भाई लक्ष्मण वनवास के लिए जाते वक्त भारद्वाज आश्रम आए थे. यहां महर्षि भारद्वाज ने ही उन्हें वनवास के लिए चित्रकूट जाने का रास्ता बताया था. अगर आपके के पास समय है तो आप प्रयागराज शहर के पास वाराणसी या फिर कौशांबी भी जा सकते हैं. कौशांबी में माता शीतला के कड़ा धाम के दर्शन के लिए जा सकते हैं. अगर प्रयागराज के बाद आप वाराणसी में काशी विश्वनाथ जी के दर्शन का प्लान बना रहे हैं तो पास में मां विंध्यवासिनी के दर्शन के मिर्जापुर भी जा सकते हैं.