केंद्र सरकार बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों के खिलाफ ऑपरेशन पुश बैक के तरह सख्त कार्रवाई कर रही है. निर्वासन की प्रक्रिया को सरकार ने तेज किया है, जबकि पहले इसमें काफी वक्त लगता था. क्योंकि बांग्लादेश इन घुसपैठियों को अपना नागरिक नही स्वीकार करता था.
भारत में खुली सीमा की वजह से इन घुसपैठियों की संख्या लगातार बढ़ रही थी. इसकी वजह से हालात गंभीर होते जा रहे थे. साल 2016 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2 करोड़ से ज्यादा अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं. लेकिन अब इन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया तेज हो गई है. इस ऑपरेशन को अनाधिकारिक रूप से ऑपरेशन पुश बैक के नाम से जाना जा रहा है.
केंद्र सरकार ने बांग्लादेशी और रोहिंग्या (अवैध प्रवासियों) की पहचान और दस्तावेज के वेरिफिकेशन के लिए 30 दिन की सीमा तय की है. इस सत्यापन में फेल होने पर उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा. इसके अलावा केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से जिला स्तर पर डिटेंशन सेंटर बनाने के निर्देश दिए हैं. यहां से सत्यापन नहीं होने पर इन्हें बीएसएफ और तटरक्षक बल को निर्वासन के लिए सौंपा जाता है. अब सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे लोगों का रिकॉर्ड रखना होगा.
पिछले दिनों असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि भारत ने बांग्लादेश से घुसपैठ से निपटने के लिए एक नई “पुश बैक” रणनीति अपनाई है। उन्होंने कहा कि केंद्र ने देश के विभिन्न हिस्सों से रोहिंग्या सहित अवैध अप्रवासियों को निर्वासित कर दिया है, जिसमें गोलपारा में मटिया हिरासत केंद्र भी शामिल है, जो अवैध अप्रवासियों को रखने के लिए देश में सबसे बड़ी सुविधाओं में से एक है।
उन्होंने कहा, “हमने उन्हें बाहर निकाल दिया है। हिरासत केंद्र से सभी लोग बांग्लादेश वापस चले गए हैं, सिवाय उन लोगों के जो मटिया में हैं, जहां मुकदमेबाजी चल रही है।” उन्होंने कहा कि उनके पास निर्वासित किए गए अवैध प्रवासियों की सटीक संख्या नहीं है. हमारी सरकार ने यह फैसला लिया है कि घुसपैठियों को ‘पुशबैक’ करार दिया जाएगा. हम उन्हें भारत की कानून-व्यवस्था का अपमान नहीं करने देंगे.