हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस पर्व पर सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रहती हैं और सोलह ऋृंगार के साथ पूजा अर्चना करती हैं. ऐसा माना जाता है कि करवा चौथ का व्रत करने से पति और पत्नी के रिश्ते में प्रेम बढ़ता है. इस व्रत में व्रत से जुड़ी कथा का पाठ भी किया जाता है.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक प्राचीन काल में द्विज नाम का एक ब्राह्मण था. 7 बेटों के अलावा उसकी एक बेटी थी. जिसका नाम वीरावती था. एक बार उसने अपने मायके में करवा चौथ का निर्जला व्रत रखा. अन्न और जल नहीं ग्रहण करने की वजह से उसे कमजोरी महसूस हुई. उसे परेशान देख उसके भाइयों ने गांव के बाहर वट वृक्ष पर आग की रोशनी जला दी और अपनी बहन वीरावती से कहा कि चंद्रमा निकल आया है, वो चल कर उन्हें अर्घ्य दे दे. वीरावती ने अपने भाइयों की बात मान ली.
कुछ ही समय बाद उसे अपने पति की मृत्यु की खबर मिली. वीरावती विलाप करने लगी तो देवी इंद्राणी वहां प्रकट हुईं और उन्होंने उसे बताया कि उसने व्रत अधूरा तोड़ा है. इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ. इसके बाद देवी इंद्राणी ने वीरावती को विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत करने को कहा. वीरावती ने एक बार फिर विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत रखा. जिसके बाद उसके पति का जीवनदान मिला और वो अपने पति के साथ सुख पूर्वक रहने लगी.