देश के दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में खूमने-फिरने की कई जगहें हैं जो सैलानियों को लुभाती हैं. इनमें ग्वालियर का किला यहां आने वाले टूरिस्ट को अपनी ओर खींचता है.
किले की बेमिसाल खूबसूरती
ग्वालियर का खूबसूरत किला हर किसी को अपनी ओर लुभाता है. यहां मध्यकाल की स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है. इस किले का निर्माण 727 ईस्वी में सूर्यसेन नाम के स्थानीय सरदार ने (आठवीं शताब्दी में) कराया गया था. गोपाचंद की पहाड़ी पर लाल बलुए पत्थर से बने इस किले की ऊंचाई 35 फीट है. जो करीब 3 वर्ग किलोमीटर में फैला है.
किले की खासियत
ग्वालिय में तोमर राजवंश के शासन (1398 से 1505 ईस्वी) के दौरान राजा मान सिंह (1486 से 1516) ने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए गुजारी महल बनवाया. फिलहाल इसे पुरातात्विक संग्रहालय में बदल दिया गया है. जहां आपको पहली ईस्वी की दुर्लभ मूर्तियां देखने को मिल जाएंगी. यही नहीं यहां भीम सिंह की छतरी और तेली का मंदिर भी देखने योग्य है. इस किले में जैन तीर्थंकरों समर्पित 11 जैन मंदिर हैं.
सहस्त्रबाहु मंदिर (सास-बहू मंदिर)
यहां दसवीं शताब्दी में बना सहस्त्रबाहु मंदिर भी टूरिस्ट को आकर्षित करता है. जिसे सास-बहू मंदिर भी कहा जाता है. यह मंदिर शिल्पकला और स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है. मंदिर को लेकर कई कहानियां जुड़ी हुई हैं.
जौहर कुंड
इसी किले में जौहर कुंड भी है, जहां इल्तुतमिश द्वारा किले पर कब्जा करने पर राजपूत महिलाओं ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए आग के कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी.
ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा किला
किले के निर्माण के बाद इस पर पाल वंश फिर प्रतिहार वंश ने राज किया. इस किले पर कई राजपूत राजाओं ने भी राज किया. 1023 ईस्वी में मोहम्मद गजनी ने इस पर आक्रमण किया लेकिन वो नाकाम रहा. फिर 1196 ईस्वी में काफी कोशिश के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले पर कब्जा कर लिया, लेकिन 1211 ईस्वी में उसे यहां से हार कर जाना पड़ा. इसके बाद 1231 ईस्वी में इल्तुतमिश (गुलाम वंश) ने इस पर कब्जा कर लिया. मुगल काल और बाद ब्रिटिश काल में भी ये किला कई अहम घटनाओं का गवाह रहा. इस तरह अलग-अलग काल में इस किले का महत्व बना रहा.
ग्वालियर जाने के लिए कैसे जाएं.
ग्वालियर, भोपाल से 430 किलोमीटर दूर है. यहां से आपको ट्रेन और फ्लाइट भी मिल जाएगी. देश के दूसरे हिस्से से भी यहां सीधी ट्रेन और फ्लाइट की सुविधा उपलब्ध है. (तस्वीर साभार – ग्वालिय का किला फेसबुक पेज से साभार)