कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाने वाला छठ महापर्व में लोगों की बड़ी आस्था है. दीवाली से 6 दिन बाद मनाए जाने वाले इस पर्व में छठी मैया और भगवान सूर्यदेव की आराधना की जाती है. यह पर्व बिहार, झारखंड उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र के लोगों द्वारा पूरी श्रद्धा से मनाया जाता है. बड़ी संख्या में इन राज्यों के लोग जब से दूसरे राज्यों में रहने लगे हैं. तब से देश ही नहीं विदेशों में इस पूजा का मनाया जाने लगा है.
राजा प्रियवद की कोई संतान नहीं थी. महर्षि कश्यप के कहने पर उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ किया. जिससे उनकी रानी को पुत्र हुआ लेकिन वो मृत था. राजा प्रियवद बहुत निराश हो गए और अपने प्राण त्यागने लगे. तभी भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं और कहा- सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी के नाम से जानी जाती हूं. मां देवसेना ने कहा कि राजा प्रियवद से कहा – हे राजन, तुम मेरी पूजा करो इससे तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा प्रियवद ने मां के कहे अनुसार मां षष्ठी का व्रत किया. कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन राजा प्रियवद ने व्रत रख कर मां की पूजा की. जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. इसके बाद से पुत्र रत्न के साथ-साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए छठ महापर्व मनाया जाने लगा.
लंका के राजा रावण पर विजय पाने और अयोध्या में राम राज्य की स्थापना के दिन श्रीराम और मां सीता ने भी छठ मैया की पूजा की थी. इस दिन भी कार्तिक मास की शुक्ल अष्ठी थी. इसी तरह महाभारत काल में भी सूर्य पुत्र कर्ण ने भी भगवान सूर्य की पूजा की थी. जब पांडव जुएं में अपना सारा राजपाठ हार गए तब उनकी पत्नी द्रौपदी ने छठी मैया की पूजा की और व्रत रखा. जिसके बाद उन्हें अपना राजपाठ वापस मिल गया.
चार दिन तक चलने वाली इस पूजा में व्रतधारी (स्त्री-पुरुष दोनों) 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं. जिसमें पहले नहाए-खाए के साथ पूजा की शुरुआत होती है. दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन शाम में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. मान्यता के मुताबिक छठ (षष्ठी) देवी सूर्य भगवान की बहन हैं. इसीलिए छठी मैया को खुश करने के लिए भगवान सूर्य की पूजा की जाती है.