एक संपन्न साहूकार भगवान भोले शंकर का भक्त था. लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी. उसका भक्ति भाव देख कर एक दिन माता पार्वती ने भगवान शंकर से कहा – प्रभू इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देकर इसका कष्ट हरिए. इस पर भगवान शिव ने कहा कि इस साहूकार की किस्मत में पुत्र प्राप्ति का योग नहीं है. अगर इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मिल भी गया तो वो सिर्फ 12 साल ही जीवित रह सकेगा. इस पर माता पार्वती ने कहा – आपको इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देना होगा. नहीं तो भक्त आपकी पूजा क्यों करेंगे. माता पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया. साहूकार यह सारी बातें सुन रहा था. इसलिए उसे न तो पुत्र प्राप्ति की ना तो खुशी हुई और न ही दुख. इसी वजह से वह पहले की तरह भगवान की पूजा-अर्चना करता रहा. उसने घर यह बात किसी को नहीं बताई.
कुछ दिन बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. घर में खूब खुशियां मनाई गईं. जब उनका बच्चा 11 साल का हो गया तो साहूकार की पत्नी ने उसके विवाह की बात कही. इस पर साहूकार कहा कि अभी तो बच्चे को काशी पढ़ने भेजना है. साहूकार ने बच्चे को उसके मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेज दिया. साहूकार ने यह भी कहा कि रास्ते में जहां भी रुकना वहां यज्ञ करते हुए और ब्रह्मणों को भोजन कराते हुए आगे बढ़ना.
जब दोनों एक राज्य से हो कर गुजर रहे थे तब उस राज्य की राजकुमारी का विवाह एक आंख (काना) वाले युवक से हो रहा था. उस दूल्हे के पिता ने जब इस सुंदर बच्चे को देखा तो उसने सोचा कि शादी के सारे काम इस लड़के को दूल्हे की जगह बैठा कर करा लिए जाएं. उसने लड़के के मामा से बात की तो वो पैसों के लालच में राजी हो गए. साहूकार का बेटा विवाह में दूल्हे की जगह बैठ गया. लेकिन जाने से पहले उसने राजकुमारी की चुनरी के पल्ले में लिख दिया कि – तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है, लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हारा विवाह होने था वो एक आंख वाला था.
राजकुमारी ने जब चुनरी में लिखा संदेश पढ़ा तो उसने राजकुमार के साथ जाने से इनकार कर दिया. उधर मामा-भांजे काशी पहुंचे. एक दिन मामा ने यज्ञ का आयोजन किया. उसी दिन भांजे की मौत हो गई. उसे राते देख पास से गुजर रही माता पार्वती ने पूछा तो भगवान शिव ने उन्हें बताया कि यह उसी साहूकार का बेटा है. इस पर माता पार्वती ने भगवान शिव से उस बच्चे को जीवित कर देने को कहा. माता पार्वती की जिद को देखते हुए भगवान शिव ने उसे जीवित कर दिया. मामा-भांजे ने भगवान शिव और माता पार्वती को धन्यवाद दिया और खुश होकर अपने घर लौटने लगे. रास्ते में वह उसी राज्य पहुंचे जहां राजकुमारी से उसकी शादी हुई थी. राजकुमारी ने उसे पहचान लिया और राजा ने भी उन्हे सम्मान के साथ विदा किया.
उधर साहूकार ने प्रतिज्ञा ली थी कि अगर उसका बेटा सकुशल नहीं लौटा तब वो छत से कूदकर अपनी जान दे देगा. जब उसने अपने बेटे को सुरक्षित देखा तो वह खुश हो गया. इसके बाद भगवान शिव उसके स्वप्न में आए और उन्होंने कहा कि वह उसकी भक्ति से प्रशन्न हैं. ऐसा माना जाता है कि जो इस कथा को पढ़ता है या फिर सुनता है उसके सारे दुख नष्ट हो जाते हैं. साथ ही साथ उसकी मनोकामना भी पूरी होती है. (ऊं नम: शिवाय)