Sambhal violence : मार्च, 1978 के संभल दंगे में पूरा शहर मानो जल उठा था. सौ से ज्यादा हिंदुओं के मारे जाने के बाद संभल में हिंदू खौफ में जी रहे थे. इसी डर में यहां के 40 रस्तोगी परिवार अपने घर छोड़कर भाग गए. लेकिन 46 साल बाद संभल में एक बंद मंदिर मिलने के बाद जिस तरह से प्रदेश की योगी सरकार ने उस दंगे को लेकर गंभीरता दिखाई है. उससे एक बार फिर उस दंगे की आग में जले हिंदू परिवारों को इंसाफ मिलने की उम्मीद जागी है. दूसरी सरकार ने कभी दंगे के पीड़ितों की खोज खबर नहीं ली. क्योंकि वो हिंदू थे. लेकिन आज हालात बदल चुके हैं. हिंदुओं के प्रति नेताओं की कुत्सित सोच उजागर हो चुकी है. हिंदुओं की एकता की ताकत ने उन परिवारों को इंसाफ दिलाने की कोशिश की है. जिसने आंसू कभी दुनिया के सामने ही नहीं आए. प्रदेश की योगी सरकार की प्रतिबद्धता से अब उन पीड़ितों की सूख चुके आंसुओं को इंसाफ की उम्मीद जागी है.
सालों पहले 29 मार्च 1978 को संभल दंगों की आग में झुलस गया था. होलिका दहन का विवाद फिर एक कॉलेज में छात्रों का विवाद, नगरपालिका कर्मचारियों और रिक्शाचालकों की नाराजगी के बीच बने हालात में मंजर शफी नाम के शख्स और उसके उपद्रवी समर्थकों ने भड़काऊ नारेबाजी शुरू कर जबरन बाजार को बंद कराना शुरू कर दिया और विरोध करने लूटमार शुरू कर दी. लूटमार की इस घटना के बाद फैली अफवाहों की वजह से यह लूटमार हत्या और आगजनी में बदल गई. इस दंगे में 10 से 12 हिंदू मारे गए थे. इसके बाद संभल के कई इलाकों में महीनों कर्फ्यू लगा रहा.
46 साल पहले जो मंदिर बंद कर दिया गया था. वो सामने आ गया. इनकी सच्चाई को सबके सामने ला दिया. मुख्यमंत्री ने कहा कि संभल में इतना प्राचीन मंदिर क्या रातों रात प्रशासन ने बना दिया. क्या वहां बजरंगबली की इतनी प्राचीन मूर्ति रातों रात आ गई. क्या वहां शिवलिंग निकला है. क्या ये आस्था नहीं थी. मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन दरिंदों ने 46 साल पहले संभल में नरसंहार किया था उन्हें आज तक सजा क्यों नहीं मिली. इस मसल पर चर्चा क्यों नहीं होती. लेकिन जो इस मुद्दे पर बोलता है उसको धमकी दी जाएगी- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ